Saturday 22 June 2013

अनिश्चित


जीवन में ना जाने कब क्या हो जाये
आज अपने साथ है कल खो जाये
कुछ भी तो निश्चित नहीं रहता
ज़िंदगी का भरोसा नहीं रहता
मौत दबे पाँव आ कर कब सुला जाये
क्यों कर आज ही जी लें इस तरह
कल का अफ़सोस ही ना रह जाये
धर्म ,जाति के नाम पर जो दूरी आ जाती है
क्यों ना उसे ख़ुशी से मिटाया जाये
दिलो ं में जो नफ़रत है उसे गिरा जाये
दुश्मनों को भी अपना बनाया जाये
जीवन तो क्षण भंगुर है
इस में मिठास लाई जाये
सुख दुख की लाठी लिये
जीवन पथ पर आगे बड़ा जाये

आभा दवे (सोमवार)
२२।१०।२०१२