Tuesday 1 September 2015

अदृश्य / आभा दवे
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बादलों की ओट से
पुकार कर कोई कह रहा है
मैं वही हूँ जिसे तुम मंदिर में खोजते हो
और पूजते हो पर मैं तो आकाश के अनंत
छोर तक व्याप्त हूँ ,अगर हो सके तो
मुझे पहचान लो और मुस्कुरा कर रोज़ मेरा
स्वागत करो मैं तुम्हें वही मिलूँगा
अपनी बाँहें फैलाये तुम्हारे ग़मों को
अपने मैं समेटे हुए तुम को नया
जीवन देने के लिए ।
                              आभा दवे (22-8-2014)