Monday, 27 September 2021
कमला भसीन जी की रचनाएं
कमला भसीन (जन्म 24 अप्रैल 1946) ( मृत्यु 25 सितम्बर 2021) का निधन 25 सितंबर को हो गया है। कमला भसीन जी एक सुप्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका, नारीवादी कार्यकर्ता, लेखिका तथा सामाजिक विज्ञानी थी। उन्होंने अपने गीतों, कविताओं के माध्यम से अपने विचारों को आम जनता तक पहुँचाया। उन्होंने नारीवाद और पितृसत्ता पर कई किताबें लिखी हैं । उनकी कई पुस्तकों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। नारी उत्थान के लिए उन्होंने हमेशा अपनी आवाज बुलंद की । सरल और सहज भाषा के माध्यम से उन्होंने अपनी बात सभी के सम्मुख प्रस्तुत की। कमला भसीन जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रस्तुत है उनकी कुछ सुप्रसिद्ध रचनाएँ 🙏🙏
कमला भसीन जी की कुछ रचनाएं
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1) उमड़ती लड़कियां
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हवाओं सी बन रही हैं लड़कियाँ
उन्हें बेहिचक चलने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं बेवजह रोका जाना
फूलों सी बन रही हैं लड़कियाँ
उन्हें महकने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं बेदर्दी से कुचला जाना
परिंदों सी बन रही हैं लड़कियाँ
उन्हें बेखौफ उड़ने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं उनके परों का काटा जाना
पहाड़ों सी बन रही हैं लड़कियाँ
उन्हें सिर उठा जीने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं सिर को झुका कर जीना
सूरज सी बन रही हैं लड़कियाँ
उन्हें चमकने में मजा आता है
उन्हें मंजूर नहीं पर्दों में ढका जाना।
2) क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है
एक पिता अपनी बेटी से कहता है-
पढ़ना है ! पढ़ना है ! तुम्हें क्यों पढ़ना है?
पढ़ने को बेटे काफी हैं , तुम्हें क्यों पढ़ना है?
बेटी पिता से कहती है-जब पूछा ही है तो सुनो मुझे क्यों पढ़ना है , क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है।
पढ़ने कि मुझे मनाही है सो पढ़ना है
मुझ मैं भी तरुणाई है सो पढ़ना है
सपनों ने ली अंगड़ाई है सो पढ़ना है
कुछ करने की मन में आई है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है।
मुझे दर-दर नहीं भटकना है सो पढ़ना है
मुझे अपने पाँवों चलना है सो पढ़ना है
मुझे अपने डर से लड़ना है सो पढ़ना है
मुझे अपने आप ही गढ़ना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है।
कई जोर जुल्म से बचना है सो पढ़ना है
कई कानूनों को परखना है पढ़ना है
मुझे नए धर्मों को रचना है सो पढ़ना है
मुझे सब कुछ ही तो बदलना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है।
हर ज्ञानी से बतियाना है सो पढ़ना है
मीरा का गाना , गाना है सो पढ़ना है
मुझे अपना राग बनाना है सो पढ़ना है
अनपढ़ का नहीं जमाना है सो पढ़ना है
क्योंकि मैं लड़की हूँ मुझे पढ़ना है।
3) हो अन्यायी न्याय तो कैसे सहा जाए
बाड़ खेतों को खाए तो कैसे सहा जाए।
मामले घरों के निजी कानून में आएँ
मर्दाने धर्मों के इन पर है साए
ये सारे औरत को दबाएँ
खुद न्याय दबाए , ये कैसे कहा जाए।
परिवार का मुखिया पति क्यों कहाए
बच्चों पर हक भी पिता ही क्यों पाए
न्याय कहना इसे है अन्याय
ऐसा उल्टा हो न्याय - ये कैसे सहा जाए।
जायदाद आधी कहीं आधी गवाही
मर्दो को चार शादी हम को मनाही
दोगले कानून और कितने गिनाए
खुद अंधा हो न्याय - ये कैसे सहा जाए।
न्याय कराने जो जज साहब आए
मर्दाना चश्मा है वो भी चढ़ाए
पितृशाही पुलिस भी चलाए
न्याय कहीं हम न पाएं -ये कैसे सहा जाए।
सहने को रहने दें कहने पे आएं
कोट कचहरी के धोखे न खाएं
कानून मर्दाने अब न चलाएं
नए कानून बनाएँ तो बड़ा मजा आए
कोई आधा न पाए - तो बड़ा मजा आए
कोई ज्यादा न पाए - तो बड़ा मजा आए।
4) पर लगा लिए हैं हमने
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पर लगा लिए हैं हमने
अपन पिंजरों में कौन बैठेगा जरा सुन लो
जब तोड़ दी है जंजीरे
तो कामयाब हो जाएँगे ज़रा सुन लो
खड़े हो गए हैं मिल के
तो हम को कौन रोकेगा ज़रा सुन लो
दीवारें तोड़ दी हमने
अब खुलकर साँस लेगें ज़रा सुन लो
औरों की ही मानी अब तक
अब खुदी को बुलंद करेंगे ज़रा सुन लो
देखो सुलग उठी हैं चिंगारी
अब जुल्मों की शामत आई है ज़रा सुन लो
मर्दों के बनाए कानून
अब हमको मंजूर नहीं ज़रा सुन लो।
-कमला भसीन