Wednesday 10 August 2022

रक्षाबंधन-आभा दवे


रक्षाबंधन

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सावन का महीना आते ही चारों ओर रिमझिम फुहारों के साथ त्यौहारों की चहल -पहल शुरुआत हो जाती है। मंदिरों की रौनक बढ़ जाती है। बाजार सज-धज कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने लगते हैं। जगह -जगह सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगी राखियाँ बहनों को लुभाती है। हमारे देश के त्यौहार सांस्कृतिक, धार्मिक सामाजिक , राष्ट्रीय परंपराओं से बंधे हुए हैं। जो लोगों में जोश भर देते हैं। धार्मिक भावनाओं के साथ -साथ राष्ट्रीय भावना का उत्साह भी लोगों में दिखाई देता है। 
सावन महीने में ही रक्षाबंधन का त्यौहार आता है। रक्षाबंधन को श्रावणी और नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं। समुद्र तट पर रहने वाले समुद्र देवता को नारियल अर्पित करते हैं और अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। रक्षाबंधन के दिन सज -धज कर बहने अपने भाइयों को तिलक कर ,आरती उतारती हैं एवं भाइयों के हाथों में राखी बांधती हैं । भाइयों की लंबी उम्र की दुआ करती हैं और अपनी रक्षा का वचन चाहती है। भाई अपनी बहनों को उपहार देकर रक्षाबंधन की रस्म पूरी करता है।


रक्षाबंधन से जुड़ी कई कथाएँ सुनने को मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान वामन ने दैत्यराज 'बली' को बाँधकर पाताल लोक भेजा था। उसी की याद में रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मण यजमानों की सुरक्षा के लिए रक्षा सूत्र बाँधते हुए संस्कृत का मंत्र या श्लोक पढ़ते हैं ,जिसका अर्थ है जिस रक्षा सूत्र से दानवेन्द्र बली राजा बाँधा गया था ,उसी से मैं तुम्हें बाँधता हूँ। यह रक्षा सूत्र अचल हो।


रक्षाबंधन से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है कि इंद्राणी ने देवासुर- संग्राम के समय देवताओं को रक्षा सूत्र बाँधकर उन्हें शक्ति संपन्न किया था। इसीलिए ऐसा माना जाता है कि बहने भाइयों को रक्षा सूत्र बाँधती हैं।


रक्षाबंधन के पर्व का ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है। राखी के इस पवित्र बंधन ने मुगल सम्राट हुमायूँ को अमर कर दिया। जब भी रक्षाबंधन का त्यौहार आता है हुमायूँ को हमेशा याद किया जाता है। कहा जाता है कि मेवाड़ की महारानी कर्णवती देवी ने राखी भेजकर मुगल सम्राट हुमायूँ को भाई बनाया था और उस भाई ने बहन की रक्षा के लिए बहादुरशाह के विरुद्ध युद्ध किया था। ये प्रसंग हमें राखी की महत्त्वता को दर्शाता है। राखी की खातिर धर्म से ऊपर उठकर भाई अपनी बहन की रक्षा करता था ।


धीरे-धीरे राखी का स्वरूप बदलता जा रहा है। अब यह मात्र एक रस्म रह गई है जो बस निभाई जा रही है इसमें वह जज्बा नहीं है जो अपनी बहन की रक्षा कर सकें। आजकल कीमती तोहफे ही रक्षाबंधन के भाई -बहन के प्रेम की परिभाषा हो गई है। लाचार, बेबस औरतें, बच्चियाँ अपने लोगों के ही द्वारा धोखा खा रहे हैं। न जाने वीर भाई अब कहाँ खो गए हैं? बहनों की चीखें अब उन्हें पिघला नहीं पाती। क्या वे सभी पाषाण हृदय हो गए हैं? प्रश्नचिन्ह उठा रही है आज की हर नारी कहाँ हो भाई, तुम कहाँ हो? और बहन कह रही है अपने भाई से गर्व के साथ -

भैया मेरे मैं बाँधूंगी तुमको राखी
तुम देना उपहार मुझे देखेगी सखी
मँहगें उपहार अब नहीं चाहिए हैं मुझे
तुम मुझे बाँध देना एक प्यारी राखी।

भाई की प्रीत तूने सदा है निभाई 
मैं करुँगी तेरी रक्षा बन तेरा भाई
राखी की लाज तो भाई निभाते हैं
पर अब लगता है बहनों की बारी आई।

करनी होगी अपनी रक्षा अब खुद ही
लेना होगी सबको स्वयं अपनी सुध ही 
भाई कहाँ कर पा रहे हैं रक्षा बहनों की
रक्षाबंधन पर्व संग लाए नई सुध-बुध ही ।

आभा दवे
मुंबई 
10-8-2022
बुधवार