मन
——
मन के खेल निराले
सपनों से भरे प्याले
खुदी अपनी दुनिया बसाले
मन के खेल निराले ।
घर ,वन ,उपवन ,मंदिर भटके
चलता है कुछ ढलके ढलके
लिए साथ यादों के उजाले
मन के खेल निराले ।
धरती अंबर अपने मे समाये
वो करता मंथन गोते लगाये
अंतर घेर बिछ जाते है जाले
मन के खेल निराले ।
रूठा रहता हरदम खुद से
कर नहीं पाता आस प्रभु से
बिन मन कैसे हरि को पाले
मन के खेल निराले ।
आभा दवे 3-1-2018 (बुधवार )
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मन के खेल निराले
सपनों से भरे प्याले
खुदी अपनी दुनिया बसाले
मन के खेल निराले ।
घर ,वन ,उपवन ,मंदिर भटके
चलता है कुछ ढलके ढलके
लिए साथ यादों के उजाले
मन के खेल निराले ।
धरती अंबर अपने मे समाये
वो करता मंथन गोते लगाये
अंतर घेर बिछ जाते है जाले
मन के खेल निराले ।
रूठा रहता हरदम खुद से
कर नहीं पाता आस प्रभु से
बिन मन कैसे हरि को पाले
मन के खेल निराले ।
आभा दवे 3-1-2018 (बुधवार )
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