Saturday 6 July 2019

शब्द और क़लम पर कविता

शब्द और कलम /आभा दवे 
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शब्द और कलम दोनों में
एक जंग सी चल रही थी
शब्द अपने पर इतरा रहा था
कलम को चिढ़ा रहा था
देखो मैं कितना बलवान हूँ
मुझे बोलने और लिखने के पहले
सभी मुझसे डरते हैं
ना जाने ऐसा क्या कर जाऊँ
लोगों की नजरों में उठ जाऊँ या गिर जाऊँ
बहुत महिमा है शब्दों की
इसीलिए मैं इतना इतराऊँ
कलम ने हँसकर शब्द की ओर देखा
और बड़े ही प्यार से उससे कहने लगा 
मेरी ही लेखनी से तो निकलते हो तुम
और जब किसी की जुबां से निकलते हो
 तब भी तो तुम मेरी लेखनी में ढलते हो
कलम और शब्दों का मेल बहुत पुराना है
फिर क्यों आखिर हम दोनों को टकराना है
तुम और हम दोनों मिल कर दिलों पर दस्तक
देते हैं 
दुनिया की काया मिनटों में बदल देते हैं
शब्द ने कलम को गले से लगाया , सहलाया
और कागज़ की धरा पर लहराने लगे मग्न हो ।

आभा दवे 



4-7-2019 गुरुवार

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