Friday 26 July 2019

कविता -दहलीज़ / आभा दवे

  दहलीज  /  आभा दवे 
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देश के लिए बढ़ाएँगे कदम
रुक न सकेंगे चल चार कदम
देश की खातिर पार करी है घर की *दहलीज*
सीना तान बड़े चले हैं हम सब वीर
देश हमारा चैन की साँस लेता रहे
मुस्कुराते रहे हर देशवासी
कर ली है प्रतिज्ञा देश की खातिर
जान लुटाने की
मातृभूमि पर शीश नवाया
तिरंगे झंडे की खातिर
हर देशवासियों को हम सैनिकों पर अभिमान रहे
चला जा रहा देखो वीर
देश की खातिर शान से
*दहलीज* भी ना रोक सकी
बढ़ा चला स्वाभिमान से ।

*आभा दवे*

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