Friday 5 July 2019

कविता -नन्ही कली /आभा दवे

 नन्हीं कली
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उसने एक रात पहले ही 
कमरे में एक उजला प्रकाश देखा था
जिसने अपनी चमक से पूरे कमरे को 
प्रकाशवान कर दिया था
फिर भी वह घबरा रही थी
रह- रह कर मन में ख्याल उठ रहे थे
तीसरी संतान को जन्म तो दे रही हूँ
पहले बेटी फिर बेटा आया था 
अब की बार न जाने क्या हो
मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी
हे भगवान बेटा ही देना
जो मेरा मान- सम्मान बढ़ाएगा 
मेरा सहारा बन मेरे आँचल में मुस्काएगा
दर्द की पीड़ा असहनीय हो रही थी
और मन की पीड़ा भी कुछ कम नहीं थी
यदि बेटी हो गई तो ताने भी तो सुनना पड़ेंगे
वह अपने आप को समझा रही थी
क्या हुआ अगर बेटी हुई तो
मेरी वह भी तो पहचान बनेगी
पर मन ही मन बेटे के लिए ही 
दुआ माँग रही थी
समय हो चला प्रसव पीड़ा का
पौ फटते ही उसके आँचल में
एक नन्ही कली मुस्कुरा रही थी
माँ ने प्यार से उसे देखा
अपने आँचल में समेटा
वह नन्ही कली और कोई नहीं 
मैं ही थी हाँ मैं ही थी ।

आभा दवे 



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