Tuesday 2 July 2019

कविता -लगातार / सतत

,*लगातार*/*सतत*
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नित्य नए रुप बदलता है जीवन
निरंतर आगे बढ़ता है जीवन 
हर पल यहाँ कई नई चुनौतियाँ
उनमें गिरता और उठकर संभलता है 
जीवन
लगातार जिंदगी लेती है इंतिहान 
हर कसौटी पर खरा 
नहीं उतर पाता है इंसान
चिंता की पोटली लिए सतत
इधर से उधर ,उधर से इधर ही 
भटकता रहता है हमेशा इंसान
उम्मीद का दीया लगातार जल 
नहीं पाता
उसकी लो पल - पल में टिमटिमाने 
लगती है
आस्था भी डगमगाने लगती है
अपने ही मन के भंवर में फंस कर रह जाता 
है इंसान
फिर भी सांसो की डोर जब तक चलती है
सतत कोशिश में लगा रहता है इंसान ।



*आभा दवे*

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