Sunday 24 November 2019

कहानी -कब पिघलेगी बर्फ़ /डॉ प्रमीला वर्मा

अंशु उठकर तकिए के सहारे बैठ गई। बरामदे की जाली में लगी ड्रंकेन सोल्जर की बेल के छितराए फूलों की खुशबू में अपने चेहरे को भिगोते हुए उसने दूर से आते शब्द सुने थे। मां कह रही थीं-" रोहित बेटे, बुरा मत मानना अब अंशु है ही कितने दिनों की ?क्या फायदा बार- बार जिक्र में उसकी बीमारी सामने लाई जाए । कम से कम उसे हम साइकोलॉजी ट्रीटमेंट तो दे ही सकते हैं न.... सच्ची झूठी खुशियां ही " कहते कहते मां का रो पड़ना उसने स्पष्ट सुना। फूलों में खुशबू कहां रह गई है ?वे भी तो बोझिल से दिखते हैं ।मानो वे भी झूठी दिलासा देते हैं और उसे दुहराते हैं। रोहित को कुछ वर्ष पूर्व उसने अपनी चचेरी बहन वृंदा के विवाह के अवसर पर देखा था ।वृंदा जीजी का वह देवर है। और ,विवाह के समय वधू पक्ष और वर पक्ष ने खूब हंसी मजाक नाच गाना किया था ।वधु पक्ष ने जूते चुराकर अपनी जीत दर्ज कराई थी। और तभी अंशु और रोहित एक दूसरे को दिल दे बैठे थे ।तीन वर्ष तक यह सिलसिला चला था ।कभी रोहित किसी बहाने से उनके घर आ जाता कभी वह वृंदा जीजी के घर चली जाती। अंशु का परिवार मिलिट्री परिवार था। जहां के कड़े अनुशासन में वह पली बढ़ी थी।
उसने पीएचडी का रजिस्ट्रेशन करा लिया था ।कहां तो पीएचडी का रजिस्ट्रेशन, बहुत कम समय में हो गया था,टॉपिक का चयन, इस खुशी में वह समूची डूबी थी, कि उसी दिन मां को उसके टेबल का टेबलक्लॉथ बदलते समय नीचे दबाकर रखी हुई रोहित की लिखी चार लाइन की चिट्ठी हाथ लगी थी ...... क्या मां इतनी कर्कशा भी हो सकती थीं। जबकि वह एक मेच्योर लड़की है और अपने निर्णय लेने में सक्षम है ।लेकिन मां तो बिफरी खड़ी थीं जैसे रोहित कोई अजनबी हो जिसे मां जानती तक नहीं।
"अंशु! हमारा परिवार एक फौजी परिवार है . तुम्हारे पिता उनके पिता और उनके भी पिता सदा फौज में रहे ।तुम्हारे दादा जी के भाई ने दुश्मन की एक सैन्य टुकड़ी को विजय हासिल कराते हुए वीरगति पाई थी । और उन्हें सेना का महत्वपूर्ण मेडल प्राप्त हुआ था। मैं भी कर्नल की बेटी हूं। क्या तुम इस खानदान का अनुशासन और परंपराएं भूल गईं ।इतनी निम्न हरकत कर सकती हो मुझे यकीन नहीं हो रहा ।" मां सदा से कड़क अनुशासन में पली बढ़ी थीं और ऐसा ही उन्होंने इस घर को रखा था। उनका इकलौता बेटा सौरभ उसका बड़ा भाई फौज में ट्रेनिंग ले रहा था । "जानती हो, तुम्हारी शादी शिशिर से कभी की पक्की कर दी गई थी ।अब वह ट्रेनिंग पूरी करके लौट रहा है।" मां ने कहा । "और !उसके लौटते ही शायद अगले महीने हम तुम्हारी सगाई करने जा रहे हैं" पिता हाथ में चार लाइन की रोहित की लिखी चिट्ठी लिए खड़े थे । "धिक्कार है अंशु ,जिसका पिता कड़क ठंड में सीमा पर तैनात रहता है ।जब जूते उतारता था तो बर्फ की वजह से पैर गले रहते थे। वह अपनी सभी इच्छाओं को मार लेता था किसलिए? परिवार को खुशियां देने के लिए, और देश की रक्षा के लिए ।ऐसे मेजर विनोद सोलंकी की बेटी परिवार के आदर्शों को दरकिनार करके अपने लिए स्वयं वर ढूंढेगी" पिता ने उससे कहा। 
अंशु यह सब सुनकर भीतर तक टूट चुकी थी यह कैसा आदर्श था कि वह अपनी मर्जी से नहीं जी सकती ।उसे अपने माता पिता की मर्जी के अनुसार चलना होगा ।क्या करे घर के ऐसे वातावरण में वह अपने को असहाय महसूस कर रही थी । वृंदा जानती थी की अंशु उसके देवर से प्रेम करती है। अंशु किसी भी पत्र का उत्तर रोहित को नहीं दे पाती थी ।क्योंकि सारे पत्र अब मां के हाथ में होते थे। अंशु की खामोशी से रोहित आशंका से कांप उठा था ।उसने अपनी भाभी वृंदा से विनती की थी । "भाभी प्लीज एक बार अंशु के घर जाकर पता लगाइए कि क्या बात है ।" वृंदा को अचानक सामने देखकर अंशु की मां चौंकी नहीं बल्कि समझ गईं कि वृंदा रोहित की बात करने ही आई है । "ताई जी ,आप जानती हैं अंशु और रोहित..... " हां जानती हूं "वृंदा अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाई थी कि वे बोल पड़ीं -"मुझे यह हरकत घटिया लगती है ।मैं इस विवाह के लिए कभी तैयार नहीं होंउँगी ।अगर सिर्फ यही कहने आई हो तो तुम जा सकती हो। और यदि अपनी ताई ताऊ के घर आई हो तो सदैव की तरह तुम्हारा स्वागत है ।" ताई की कठोरता उनकी कड़वाहट वह बचपन से जानती थी । पहले तो बाबा के दोनों बेटे साथ रहते थे । दोनों ही फौज में रहे ।जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में हुए हिमस्खलन में गश्त करते समय छोटे बेटे देवांश सोलंकी के पैरों पर एक हिमखंड आ गिरा था ।जिससे उनके एक पैर को काटना पड़ा था । काफी समय तक परिवार ने दुर्घटना का शोक मनाया था । और फिर सब कुछ ईश्वर की मर्जी मानकर सहन कर लिया। वृंदा के भाई की देहरादून में नौकरी लग गई थी ।सभी वहां शिफ्ट हो गए थे । देवांश ने कभी अपनी मर्जी अपने बच्चों पर नहीं थोपी। दुर्घटना के पश्चात वे खामोश हो गए थे । वृंदा ने अंशु को बताया -"ताई जी कभी नहीं मानेंगी ।तुमको अपने आप को संभालना होगा।" दोनों बहने आपस में लिपटकर बहुत रोई थीं। वृंदा दो दिन रह कर वापस लौट गई थी। रोहित अपनी भाभी का चेहरा देख कर ही समझ गया था कि अंशु उससे दूर बहुत दूर कर दी गई है।
अंशु अपने बाबा के घुटनों में सिर रखकर रो रही थी ।बाबा कहीं खोए हुए थे ।बोले-" शायद वह 1984 की बात है ,तुम्हारे पिता को सियाचिन भेज दिया गया था ।यह सही है कि सियाचिन भेजे जाने वाले सैनिकों को बाकी के मुकाबले अधिक भत्ता ,अधिक सहूलियत दी जाती थीं। लेकिन सोचो बेटा ! माइनस 45 डिग्री में यह लोग रहते थे ।ना ही चिकित्सा की उचित व्यवस्था थी तब ।ना ही संपूर्ण पौष्टिक आहार ।ऐसे में एक सिपाही तो यही सोचेगा ना कि उसका परिवार उसके साथ है। जैसा कहेगा उस निर्णय को सभी मानेंगे ।बेटा ,उसने कुछ गलत तो नहीं सोचा। मेरी बेटी मेरे जैसी ही होगी। जाने किन भावुक क्षणों में उसने अपने मित्र के बेटे को तुम्हारा हाथ सौंपने का निर्णय लिया होगा।...... और जब तुम ?समझो बेटा.... बाबा बोल रहे थे बिना युद्ध के मौसम की मार झेली है उसने.... तब सौरभ का चेहरा उसके सामने आया होगा ।नन्ही उंगलियों को पकड़कर चलने के वक्त वह अपनी छाती पर सियाचीन मेडल को लगाते वक्त क्या उसे अपने घर परिवार की याद नहीं आई होगी। लेकिन, परिवार के साथ उसने देश के लिए मर मिटने की कसम खाई थी ।और, भारतीय सैनिकों की बदौलत ही वहाँ तिरंगा फहरा रहा है ।लेकिन ,अब हालत बहुत बदल चुके हैं। तब तो वे लोग ऑक्सीजन की कमी से सांसे भी डर -डर कर लेते होंगे ।ऐसे में तुम्हारी मां प्रतिदिन मरी थी.... जब सुनती थी विश्व का सबसे ऊंचा ,माइनस डिग्री का वह कार्यक्षेत्र प्रतिदिन सैनिक मौतों को आमंत्रण देता रहा है ।और, इसी माहौल में तुम लोग पले बढ़े ।" "लेकिन बाबा !मुझे अपनी जिंदगी जीने की आजादी तो चाहिए "।रोते-रोते अंशु बोल पड़ी ।"हां !चाहिए अंशु ,लेकिन विनोद नहीं मानेगा ।वह किसी को वचन दे चुका है। यह सत्य है कि बात तुम्हें देर से बताई गई। शायद तुम पर या अपने बच्चों पर अत्यधिक विश्वास ही उसकी कमी है। शिशिर ने सागर में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली है ।अभी वह नाथूला में है ।तुम उसके साथ खुश रहोगी मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है ।" वह उठ खड़ी हुई बाबा से क्या सभी से बात करना निरर्थक था ।
उसके मन में सियाचिन की बर्फ जम गई थी। कब पिघलेगी बर्फ..... घर में मिलिट्री रूल लागू था। कौन सुनेगा उसकी बात ? अंततः हार कर अंशु ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया ।शिशिर अच्छा लड़का है, सीधा और सच्चा। लेकिन, वह अपने मन का क्या करे जो काफी पहले रोहित का हो चुका है। क्या मिलेगा इससे मां को अंशु भी दुखी रहे और रोहित भी। अगले महीने ही शिशिर के साथ उसकी सगाई हो गई और कुछ ही दिनों में उनका विवाह भी हो गया ।विवाह में चाची आई थीं। वृंदा ने कोई बहाना बना दिया था वह नहीं आई। शायद माँ भी यही चाहती थीं। रोहित उसका पहला प्यार था। उसकी संपूर्ण भावनाओं का प्रिय।....
विवाह के पश्चात उसे रोहित का ख्याल भी मन से निकाल देना था। पता नहीं वह ऐसा कर पाई या नहीं ।लेकिन शिशिर की सज्जनता के सामने उसने आत्मसमर्पण कर दिया ।बाद में उसे पता चला था कि शिशिर को अंशु और रोहित के बारे में पता चल गया था। यदि शादी के पूर्व पता होता तो शायद वह अंशु के साथ रोहित के संबंधों को लेकर यह जोर भी देता कि यदि दोनों का विवाह हो जाता तो गलत ही क्या था।
शिशिर को शादी के पंद्रह दिन बीतते -बीतते ऐसा महसूस होने लगा था कि अंशु संपूर्ण उसकी है। लेकिन अंशु तो अभी भी दोराहे पर खड़ी थी। शिशिर हंसमुख था कठिन परिस्थितियों में भी हंसते हुए जीना उसने सीखा था । शिशिर अंशु को बीती बातों से उबारना चाहता था ।अतः हमेशा ऐसी बातें करता है कि अंशु खिलखिला कर हंसने लगती। "ऐसे ही हंँसा करो अंशु !मैं हूं तब भी, ना रहूं तब भी।" शिशिर ने कहा । हँसते -हँसते अंशु गंभीर हो गई ।मानो हंँस कर कोई गुनाह किया हो ?उसकी खुशियों में तो ग्रहण लग जाता है ।ऐसा क्यों कहा शिशिर ने जबकि अपनी नई जिंदगी को उसने किसी हद तक स्वीकार किया ही था। वह उठ कर जाने लगी तो शिशिर ने उसका हाथ पकड़ लिया। " अरे ,अंशु हर बात को इतनी गंभीरता से क्यों लेती हो ?सैनिक जीवन है कब किस वक्त मौत गले लगा ले, क्या कहा जा सकता है ?" "क्यों मौत क्या सिर्फ सैनिकों को ही गले लगाती है आम इंसान नहीं मरता।" " मरता तो है ,लेकिन मृत्यु हर समय तो सामने खड़ी होती नहीं ।युद्ध हो या ना हो सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा हमेशा करता रहता है ।और..." "ठीक है ,समझ गई तुम नहीं होगे तो भी खिलखिलाती रहूंगी हमेशा ।ठीक है ?" अंशु की आंखों में आंसू तैर गए। रोहित को वह भूल तो नहीं सकती थी ।लेकिन यह समय की मांग थी कि उसे अपनी जिंदगी से दूर करना ही होगा। शिशिर वापस चला गया था ।न जाने कहां उसकी पोस्टिंग होनी थी पता नहीं कहां भेजा जाएगा वह।
बंगलो के सामने बड़े लॉन की क्या हालत हो गई है। ऊंची ऊंची घास उग गई है चारों तरफ मानो उसके साथ सभी तिल तिल कर मर रहे हैं । "चलो अंशु ,आज तुमने नाश्ता भी नहीं किया ऐसे में कितनी कमजोरी आ जाएगी चलो उठो" मां की आवाज़ और सामने खड़े रोहित को देखकर वह सकुचा जाती है। अचानक ही वे दिन सामने आ जाते हैं जब रोहित घर आता था और वह उसके लिए कई प्रकार के व्यंजन बनाया करती थी। तब मां को यही पता था कि रोहित का इस तरफ टूर लगता है तो आता है जबकि वजह टूर के साथ अंशु का प्रेम भी होता था। रोहित उसके बनाए विभिन्न व्यंजनों की तारीफ करते थकता नहीं था। दोनों कभी कभी छत पर तो कभी रास्तों पर जो कि दोनों ओर से घने वृक्षों से घिरे रहते थे उन पर घूमते रहते थे ।
सामने रोहित खड़ा था "चाय पियोगी अंशु !" "नहीं चाय मना है कोई फ्रूट जूस दे सकते हैं" मां भी कमरे में आ गई थीं। वह अपने ही घर में मेहमान बनी हुई थी। ना उठ कर चाय बना सकती थी ,ना ही बिस्तर पर स्वयं जाकर लेट पाती थी। हाथों में शक्ति नहीं थी ,पैर भी कांप जाते थे। सिर पर स्कार्फ बंधा हुआ है ।सारे बाल कीमोथेरेपी के बाद झड़ चुके हैं । रोहित ने उसे बाहों का सहारा देकर उठाया तो उसकी आंखें छलक पड़ीं। मां से ढेर सारी डांट पड़ने के बाद भी जिस लड़की की आंखें कभी गीली नहीं होती थीं, वही आंखे अक्सर छलक पड़ती हैं। रोहित ने उसकी ओर देखा तो हंस पड़ा" यह क्या मुस्कुराया करो" .... और मैं ना भी रहूं तो भी खुश रहना शिशिर ने कहा था। सारी पीड़ा मेरे हिस्से में.... और हर हालत में मुस्कुराना है.... शिशिर के वापस लौटने के बाद वह अपनी पीएचडी की पढ़ाई में जुट गई थी। उसने एक रिसर्च पेपर भी लिखा था जिसका प्रेजेंटेशन बड़ौदा में था। शिशिर को बताया तो वह खुश हो गया। "मेरी अंशु व्यस्त है सुनकर मुझे अच्छा लगा ।" जब रिसर्च पेपर लिखने की तैयारी लाइब्रेरी में बैठकर करती ,तो उसने महसूस किया था कि उसे हल्के हल्के चक्कर आने लगे हैं। बड़ौदा में रिसर्च पेपर पढ़ने के बाद अपने साथ गए अन्य पीएचडी के विद्यार्थियों के साथ जब लौट रही थी तो वह बेहोश हो गई थी। सभी घबरा गए थे शीघ्र ही उसे घर पहुंचाया गया ।तो मां ने समझा की यात्रा और पढ़ाई की अत्यधिक थकान है। लेकिन ऐसा नहीं था ढेर सारे चेकअप के बाद डॉक्टर इसी निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि उसे कैंसर इंस्टीट्यूट दिखाना होगा। मां ने तुरंत उसके पिता को बुलवाया था। सभी जांच के बाद पता चला था उसे ब्लड कैंसर है। सुनते ही मानो जमीन फट गई थी और माँ थरथराकर उसमें गिरती जा रही थीं। चाहती थी अंशु की शिशिर तुरंत आ जाए लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया । "शिशिर यह बर्दाश्त नहीं कर सकेगा "मां ने कहा था। पिता बोले थे-" वह फौजी है सहन करना है हमारी सर्विस है। और अंशु को भी बता दिया गया था कि उसे कौन सी बीमारी है ।बीमारी की खबर शिशिर को पहुंचा दी गई थी । माँ अस्पताल में उसके पलँग के पायताने बैठ कर रोई थीं। असहनीय दर्द की स्थिति में भी वह सुन पाई थी ।मां पापा से कह रही थीं" जी लेने देते उसे उसके अनुसार हमें क्या पता था उसकी जिंदगी इतनी छोटी है।"
अंशु के जीवन का वह 26 वां वसंत था। जो पतझड़ में तब्दील हो रहा था। " तो इसे कहते हैं जीवन " ? बाबा ने बेहद टूटे हुए स्वर में कहा था ।हम कब किस ओर से अनंत की ओर बढ़ जाते हैं पता ही नहीं चलता है.... बाबा आज भी अपने जूते की लेस बगैर झुके बगैर बैठे बांधते हैं ।और वह इतनी छोटी सी उम्र में ऐसी जानलेवा बीमारी से घिर गई ।.....अब समझ पा रही थी कि माँ ने रोहित को क्यों बुलाया था ।उसके जीवन की यह बड़ी दुर्घटना ....बल्कि अंत ....मां को कोई चाहिए था जो उन्हें संभाल सकें।
सारे शरीर में असहनीय दर्द हो रहा था ।सिर में बालों का नामोनिशान नहीं ....एक स्कार्फ बंधा हुआ सिर पर ...आंखों के नीचे गहरे काले गड्ढे...... कि वह मां की और दौड़ी थी। क्या हुआ मां शिशिर को ...बोलो ना ...बोलो मां... मां के हाथ से फोन का रिसीवर छूट गया था। थरथरा कर गिरने लगीं.... जिस अंशु को सहारे की जरूरत थी वही मां को सहारा देकर कुर्सी पर बैठा रही थी। मां के दांत बँध चुके थे.... बस उसने यही सुना था" क्या..... शिशिर ....मां को कुर्सी पर बिठा कर वह फोन की और दौड़ी। फोन कट चुका था उसने पुनः उस नंबर को डायल किया ।पूछा -"क्या हुआ शिशिर को उधर से सीनियर ऑफिसर की आवाज थी। शिशिर राणा अन्य चार के साथ पेट्रोलिंग ड्यूटी से ही लापता हैं।..... परसों ही तो खबर आई थी कि कुछ अधिकारी छुट्टी पर भेजे जाएंगे ।उनमें शिशिर का भी नाम था ।....शिशिर ने ही तो खुश होते हुए बताया था । नहीं ,अब बारी थी मां की कि वे अंशु को संभालें। बस उसी समय से सफेद पड़ती अंशु व्हीलचेयर पर आ गई थी ।अंशु रोई नहीं थी ।कितना क्रूर मजाक किया था ईश्वर ने उसके साथ ।व शिशिर की राह देख रही थी कि जिंदगी की यह तीन चार महीनों की लड़ाई वह शिशिर के साथ मिलकर लड़ेगी ।.....मैं आ रही हूं शिशिर उसने अस्फुट शब्दों में कहा । शिशिर ने कहा था -"हम 17000 फीट की ऊंचाई पर हैं। यहां सिंधु नदी भी जम जाती है ।हमें यहां नियंत्रण रेखा के पास तैनात किया गया है। मालूम है अंशु हम रोजाना 4:30 किलो की राइफल उठाकर पेट्रोलिंग करते हैं। यहां की ड्यूटी रोटेशन के हिसाब से बदलती रहती है कभी हम रात में पेट्रोलिंग करते हैं कभी दिन में। ऑक्सीजन की कमी में भी हमें यहां रहने की ट्रेनिंग दी जाती है। दूर-दूर तक कहीं जीवन नजर नहीं आता ।नजर आती है तो सिर्फ बर्फ ...शुरू में तो हम सभी को बहुत सिर दर्द होता था। लेकिन बाद में आदत बन जाती है। यार, कभी यहां मर गए तो हजारों साल तक हम ऐसे ही ताजा रहेंगे ।" वहां से एक हंसी का ठहाका ...वह भी रूठी रूठी सी हँस दी थी जब आऊंगा ना तो ढेरों बातें बताऊंगा ।तुम मेरे हाथों की बर्फ को महसूस करना । मैं ढेर सारी बर्फ यहां से तुम्हारे लिए लाऊंगा ।....उसी बर्फ में वह जम गई थी।
परंतु मृत्यु का दिन तो निश्चित होता है सौरभ भी आ गया था। सभी सोच रहे थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि इतनी असहनीय परिस्थिति सामने आ गई। रोहित ने पूछा था-" अंशु के लिए क्या कहते हैं डॉक्टर्स?" "डॉक्टर्स के अनुसार चौथी स्टेज है" सौरभ ने कहा और पीड़ा से भर उठा । वह मुस्कुरा दी। सभी कुछ तो सुनाई दे जाता है उसे। अच्छा है जीवन की सच्चाई उसे ज्ञात है ।वैसे वह जीना भी नहीं चाहती.... जब हाथ से सब कुछ फिसल जाए..... रीति हथेलियां लिए वह क्या करेगी । आज उसके पेट में असहनीय पीड़ा थी। अस्पताल ने उसे घर भेज दिया था ।यह सब नॉर्मल कहलाता है ।खाने को कुछ नहीं केवल जूस दे सकते हैं। " मेरे बच्चे विल पावर लगाओ तुम ठीक हो जाओगी ।"पापा ने कहा । "पापा अब पेट में क्या विल पावर लगाऊं।" फीकी और पीड़ा से भरी मुस्कुराहट के साथ उसने आंखें बंद कर ली थीं। दस दिन सौरभ रहा ।फिर उसने रोहित से कहा- "मुझे जाना होगा रोहित ,क्या तुम थोड़ा और रुकोगे? मां अकेली पड़ जाती हैं ।छुट्टी है क्या?" "छुट्टियां क्या.....बस रुक लेंगे कुछ दिन और अंशु को देख पाना ..और पहाड़ की सैर ...ताई का बुलावा। यही सब सोचकर निकल पड़ा था ।
मां, पिताजी ,सौरभ सब कितने सहृदय होते जा रहे हैं ।मां का अनुशासनात्मक स्वभाव न जाने कहां गुम हो गया है ।सौरभ के लिए पोलो नेक स्वेटर बुनते हुए न जाने क्या सोचती रहती हैं कि जितना बुनती है उतना ही उधेड़ देती हैं। वह मां का छीजना स्पष्ट देख पाती है। माँ यह भी सोचती हैं कि यदि रोहित के साथ विवाह हो जाता तो आज रोहित पति रूप में उसे संभालने सामने तो होता। इतनी बीमारी में शिशिर का लापता हो जाना जिसे मृत्यु ही माना जा रहा है कैसे सह पाती है अंशु।
बंगले में एक बियाबान सन्नाटा पसरा रहता था। सौरभ लौट चुका था। बाबा अपनी आराम कुर्सी पर अध- लेटे क्षितिज में कुछ ढूंढते रहते थे ।पापा ही आकर उनका चश्मा उतारकर बाजू की तिपाई पर रख देते तो पाते कि वह सोए नहीं हैं। बल्कि अर्ध निद्रा की अवस्था में हैं। उनके सीने पर से अखबार उठाकर लपेटकर वे रख देते। कितनी बार बाबा ने अपने जाते हुए बेटे का हाथ पकड़ा है ,मानो कह रहे हों" क्या होगा बेटा.." बेटा हाथ की पकड़ छुड़ाकर उनका हाथ थप- थपा देता ।कितनी लाचार हो जाती है जिंदगी जब हम कुछ कर ही नहीं पाते ।अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी पड़ती है । सौरभ ने जाते हुए कहा था -"जल्दी ही आऊंगा अंशु, तुम अपने प्रति पॉजिटिव रहना ।थीसिस भी पूरी करनी है ना।" "रोहित, मैं थीसिस सच में पूरी करना चाहती हूं।" उसने बगैर पलक झपकाए कहा ।सौरभ जा चुका था। थीसिस को लेकर उसके मन में एक उमंग जागी ..और तुरंत बुझ गई ... व्हील चेयर डाइनिंग टेबल के नजदीक की रोहित ने। प्लेट में खाना परोसा और खाने लगा। अंशु के कांपते हाथों में जूस का गिलास थमा रोहित ने कहा-" खुद पीना है अंशु... दूसरों पर डिपेंड होना छोड़ो ।जिंदगी को खुशनुमा तरीके से देखो ।...अच्छा हां ,तुम्हारे लिए कुछ अच्छी कविताएं छाँटी हैं... विदेशी लेखकों की हैं, कुछ अनुवाद तो मैंने किए हैं तुम्हारे लिए ।लाया हूं सुनोगी ना ?" उसने स्वीकृति मैं आंखें बंद करके खोल दीं। तकिए के सहारे पलंग पर बैठ कर वह टिक गई। काश !सामने शिशिर होता ?उसके हाथों की बर्फीली ठंडक वह महसूस करती ।कितना कुछ सुनना कहना था शिशिर से ।...जब रोहित को भुलाना आसान नहीं था तब शिशिर सामने था... और आज जब वह शिशिर का साथ चाहती थी,तो रोहित सामने है। 
मां अपने आपको अपराधी मानती हैं ।क्या पता रोहित से विवाह हुआ होता तो अंशु की मृत्यु टल जाती ,और उधर शिशिर की मृत्यु भी टल जाती। मां धार्मिक तो थीं ही ,लेकिन ऐसा भी सोचने लगी थीं। "अब नहीं गिरेंगे आंसू "सोचकर उसने आंखें खोल दीं। मां भी पास आकर बैठ गई थीं। कविताओं में दर्द था ...मृत्यु की आहट को नकारती कविता जीवंत हो उठी थी ।भावुकता से बार-बार वह भर उठती । कितनी कमजोरियां हैं इस संसार में जूझने के लिए ,पाने के लिए कितनी राहते हैं दिलासाएँ हैं ,और लड़ने को मनुष्य कितना अकेला .....कहां लापता हुआ होगा शिशिर, अपने चार अन्य साथियों के साथ ।क्या किसी गहरी बर्फीली घाटी में वे लोग गिरे होंगे ,या गिरकर सिंधु के जल में जम गए होंगे ।कहीं कोई पता नहीं। एक एक जगह उन पांच फौजियों के लिए ऐसी खँगाली गई ....मानो किसी नहर को पूरा खाली किया गया हो। कितना कुछ हो जाता है बगैर युद्ध के भी सैनिकों के साथ। जहां पारा माइनस 40 डिग्री तक होता है, सख्त ट्रेनिंग में और उस मौसम के अनुकूल अपने को बनाने में एक लंबा वक्त ......अंशु से लंबा बिछोह। और जब छुट्टियां स्वीकृत हुईं...... शरीर उस मौसम के अनुकूल ढला, तो सब कुछ खत्म...... हथेलियाँ तो गर्म होती हैं शिशिर... लेकिन, मैं तो उन परिस्थितियों में ठंडी हुई हथेलियों को महसूसना चाहती हूं। उस जज्बे को चूमना चाहती हूं, जो तुम्हारे भीतर था शिशिर । और अगर अचानक लापता शिशिर किसी दिन सामने आकर खड़ा हो जाए ?लेकिन वह तो होगी नहीं ।
बाबा ने एक बार बताया था। उनके पिताजी विश्वयुद्ध में लड़े थे तब तो हम अंग्रेजों के गुलाम थे। वे। खंदको में तैनात थे ।हर दिन तड़के सुबह संपूर्ण खंदको में "स्टैंण्डटू" किया जाता था ।तब अधिकारी अपने सैनिकों का मुआयना करते और सैनिक अपनी राइफल पर तैयार रहते थे ।क्योंकि आमतौर पर यह भोर का समय होता था ।जब दुश्मन हमला बोलता था ।यही तरीका शाम को सूरज ढलते भी किया जाता था। सुबह का नाश्ता इसी "स्टैंण्डटू" के बाद सैनिकों को दिया जाता था।.. जानती हो बेटा !महीनों खंदको में रहते सैनिकों को मनोवैज्ञानिक दबाव का शिकार होना पड़ा " "बाबा !ये खंदके मजबूत होती थीं" तब अंशु छोटी थी। इतनी भी छोटी नहीं की चार पीढ़ियों से देश को समर्पित इस खानदान की बातें भी ना समझ पाए । "हां! खंदको को मजबूत बनाया जाता था। जिससे दुश्मन को इन्हें पार करने में कठिनाई का एहसास हो ।और यह सब हम भारतीयों का दिमाग होता था। अंग्रेज तो बंदूक ही चलाते थे। 
बाबा ने ही बताया था कि जब उनके पिता जी घर लौटे थे तो लंबे समय तक बहुत बीमार रहे। मां को संतोष था कि वह घर लौटे हैं ।अपना निश्छल प्यार ,उनकी शारीरिक सेवा करके मां ने उन्हें वापस शक्ति दी थी। बेटा! औरत ही पुरुष की शक्ति है ।पुरुष की अनुपस्थिति में वह घर का मोर्चा संभालती है ।देश की लड़ाई में स्त्री-पुरुष दोनों का बराबर का योगदान होता है ।
अंशु ने रोहित को खोकर भी शिशिर के प्रति ईमानदार रहने की कोशिश की थी ।उसने सोचा था वह शिशिर को सुख -सुकून देगी ।शिशिर ने तब कहा था कि वह उसे वियतनाम ले जाएगा। जहां आज भी खंदको की लड़ाई के अवशेष हैं। जब उसने खंदको की चर्चा उससे की थी । लंबे चौड़े भविष्य के सपने तो दोनों ने नहीं संजोए थे। परंतु ,सही ढंग से जीना तो चाहा ही था।
" कहां खो गईं? रोहित ने पूछा। "नहीं, कहीं नहीं ,"अंशु ने कहा। ना वह अपने लिए न ही शहीद हुए अपने पति के लिए ठंडी सांसे नहीं भरेगी। "एक बात कहूँ तुमसे "रोहित ने पूछा । "हां कहो ?" "मृत्यु की इतनी प्रतीक्षा क्यों कर रही हो। मृत्यु तो एक कटु सत्य है। फिर जिंदगी में मिले इन चंद दिनों को क्यों उस के आगमन की प्रतीक्षा की जाए।" " सच कहते हो रोहित " "फिर प्रॉमिस करो कि खुश रहोगी" " प्रॉमिस ?रोहित प्रॉमिस तो शिशिर ने भी किया था कि वह शीघ्र आएगा। प्रॉमिस तो हमने भी एक दूसरे को किया था ।" आंखें डबडबा आईं थीं उसकी। रोहित ने उसके माथे का चुंबन लेते हुए कहा" पगली यही तो कटु सत्य है।" " रोहित मैंने किसी के साथ क्या गुनाह किया था जो सब कुछ मुझसे छिन जाए। शिशिर, तुम...... या... मैं अपने आपसे छिन गई ।बाकी कुछ है ...." वह निशब्द रो रही थी ।और रोहित उसके रक्त विहीन ठंडे हाथों को अपनी हथेलियों में थामे बैठा था ।कमरे में ,बंगलों में ,ईश्वर की बनाई इस दुनिया में शून्य पसरा पड़ा था ।मां कभी की उठकर जा चुकी थीं। "रोहित तुम क्या कुछ दिन और नहीं रुक सकते ?मां तो मेरे साथ हर पल मर रही हैं ।तुम रुक जाओ मुझ में शायद जीने की जिजीविषा जागे।" रोहित है उसे देखता रह गया ।नहीं रुक पायेगा वह ।जानता था उसके रुकने से अंशु उस कठिन समय को पार नहीं कर पाएगी । दूर ढलवा पगडंडी पर रोहित अपना बैग लटकाए जाता दिख रहा था ।वह बरामदे में व्हील चेयर पर बैठी रोहित को जाते देखती रही। रोहित की आंखों में जमा हुआ बर्फ पिघल रहा था। नहीं रोने की अपने आप को दी सांत्वना बार-बार टूट रही थी। वह हथेलियों में चेहरा छुपाए बैठी ही थी कि भीतर से मां की खुशी भरी चीख सुनाई दी "अंशु" वे भागती हुई आईं। "अंशु ,जम्मू से फोन था शिशिर जीवित है" " क्या?" अंशु व्हील चेयर से उठने लगी और लड़खड़ा गई। उन्होंने अंशु को संभाल लिया। " हां वे लोग एक वैली में गिरे थे लेकिन वहां के पेट्रोलिंग करते सैनिकों ने उन्हें बचा लिया।कई दिन लगे उन्हें ।जम्मू पहुंचाया गया। जब वे कुछ बताने लायक हुए तो तुरंत हमें खबर की गई ।अब तेरे पापा शिशिर को लेने जा रहे हैं। ईश्वर है बेटा! मेरी पुकार सुन ली ।" कहीं ना कहीं उनके मन में था कि अब अंशु निश्चय ही अच्छी होगी ।क्योंकि वह दृढ़ लड़की है, जब सामने जीने का मकसद होगा तो वह लड़ेगी बीमारी से। अंशु मां से लिपटी खड़ी थी अब उसके पैर नहीं थरथरा रहे थे।
डॉ  प्रमिला वर्मा  


परिचय
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जबलपुर में  जन्म ।
पिछले 30 वर्षों से लगातार लेखन ।सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित। स्त्री विमर्श पर "सखी की बात" स्थाई स्तंभ जो साँध्य दैनिक में 10 वर्ष चला ,चर्चित रहा।  
सभी विधाओं पर लेख प्रकाशित।
6 कहानी संग्रह, संयुक्त उपन्यास।
संपादित कथा, कविता संग्रह  आदि प्रकाशित 
20 वर्ष तक अखबारों में फीचर संपादक के पद पर कार्यरत।
दि संडे इंडियन पत्रिका में 21वीं सदी की 111 हिंदी लेखिकाओं में एक नाम ।
"बीसवीं  सदी की महिला लेखिकाओं " के नौवें खंड में कहानी ।
महिला रचनाकार: अपने आईने में  आत्मकथ्य , पुस्तक  रुप में  प्रकाशित। 
महिला पुलिस तक्रार केंद्र की सम्मानित सदस्य। सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय विजय वर्मा की स्मृति में हेमंत फाउंडेशन की स्थापना। ट्रस्ट की संस्थापक/ सचिव। जिसके  अंतर्गत 20 वर्षों से विजय वर्मा कथा सम्मान एवं  हेमंत स्मृति कविता सम्मान  प्रदान करना ।
विश्व मैत्री मंच की मीडिया प्रभारी ।
कई पुरस्कारों से सम्मानित। सोशल एक्टिविस्ट फॉर वुमन एंपावरमेंट ।जंगलों की देश, विदेश की सैर उसी दौरान कुछ मुद्दों पर लेखन, शोध आदि। चिड़ियों पर विशेष शोध हेतु पक्षी विशेषज्ञ श्री सलीम अली के साथ सुदूर रोमांचक समुद्री यात्राएं।  

निवास
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औरंगाबाद (महाराष्ट्र )431005
 मोबाइल नंबर 073918 66481 
email-id. vermapramila16 @ gmail.com

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