संदेश /आभा दवे
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खामोश लब बन गए हैं उसकी आँखों की जुबां
कह नहीं पा रहे हैं वो दिल की कोई भी दास्तां
गुजारे हैं कई दिन अपनों की यादों के सहारे ही
मन में उसने झेले हैं कई आंधियाँ और तूफान ।
फिर भी मन में विश्वास भरे हुए चल पड़े उनके कदम
जन-जन की सेवा को ही बना लिया है अपना धर्म
बिछड़ गए कई साथी और अपने तो क्या हुआ
मानवता की बन मिसाल वे तूफानों को रोकेंगे हरदम।
दे रहे सबको संदेश धरती का कर्ज हम सभी को चुकाना है
इस प्रकृति की गोद में रहकर ही सबको मुस्कुराना है
नेक इरादे और नेक राहों पर चलकर ही तो अब
अपनी-अपनी मंजिलों को पाना है शीश न झुकाना है।
आभा दवे
22-5-2021
शनिवार
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