Sunday 24 April 2022

माता खीर भवानी जी मंदिर - कश्मीर


माता खीर भवानी जी मंदिर -कश्मीर
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कश्मीर यात्रा के दौरान सुप्रसिद्ध  खीर भवानी माता मंदिर जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। कहते हैं कि जब तक माता नहीं बुलाती तब तक आप उनके दर्शन नहीं कर सकते हैं। विश्व मैत्री मंच की कश्मीर यात्रा के दौरान हम सभी को माता के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हालांकि ये  स्थान हम सभी के घूमने के स्थलों में शामिल नहीं था पर कुछ सदस्यों के कारण वहाँ जाना संभव हुआ। खीर भवानी मंदिर में कहते हैं कि सभी मान्यता पूरी होती है। मुझे दक्षिण भारत से आई एक महिला ने बताया कि वह सिर्फ अपनी मान्यता पूरी होने के बाद दुबारा माता के दर्शन करने के लिए यहाँ आई है। उसके चेहरे पर  चमक, विश्वास और बड़ी ही श्रद्धा दिखाई दी मानों माँ भवानी ने उसके सारे कष्ट हर लिए हों। उसने बड़े ही विश्वास के साथ मुझसे कहा, -"आप भी  माँ से जो चाहें माँग लें। मान्यता अवश्य पूरी होगी।"  मैंने उसे धन्यवाद दिया और दर्शन के लिए चली गई । बिना चाहत के माँ भवानी के दर्शन के लिए पहुँच गए इससे बढ़कर और क्या चाहिए।
कहा जाता है कि जम्मू और कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के बाद खीर भवानी मंदिर अधिक लोकप्रिय तीर्थों में से एक है। इस मंदिर में माँ भवानी के साथ शिव लिंग भी है। माँ भवानी के दर्शन करके और खीर का प्रसाद खाकर सुखद अहसास हुआ।

खीर भवानी मंदिर श्रीनगर से 25 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर जम्मू और कश्मीर के गान्दरबल ज़िले में तुलमुल गाँव में एक पवित्र पानी के चश्मे के ऊपर स्थित है।  ऐसी मान्यता है कि किसी प्राकृतिक  आपदा के आने से पहले ही मंदिर के कुण्ड का पानी काला पड़ जाता है। खीर भवानी देवी की पूजा लगभग सभी कश्मीरी हिन्दू करते हैं। पारंपरिक रूप से वसंत ऋतु में मंदिर में खीर चढ़ाई जाती थी इसलिए  इसका नाम 'खीर भवानी' पड़ा। इन्हें , क्षीर भवानी, महारज्ञा देवी के नाम से  भी जाना जाता है। यहाँ ज्येष्ठ अष्टमी बड़े जोर शोर से मनाई जाती है। 
इस मंदिर की सेवा सभी मिलजुल कर करते हैं। भाईचारे की भावना यहाँ  पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है । माँ भवानी की कृपा सभी पर बनी रहे ,माँ भवानी सभी का कल्याण करें यही कामना है।
    जय भवानी, जय अंबे 🙏🙏

आभा दवे
मुंबई



Saturday 23 April 2022

Aru Valley -अरु वेली, लिद्दर नदी, बेताब वेली- कश्मीर


Aru Valley -अरु वेली, लिद्दर नदी, बेताब वेली
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कश्मीर यात्रा के दौरान ही अन्य स्थानों के साथ अरु घाटी को देखने का मौका मिला। अरु घाटी का अद्भुत सौंदर्य देखते ही बनता है। अरु घाटी में ही एक बड़ा ही अद्भुत नजारा देखने मिला। घुड़सवारी में काम आने वाले कुछ घोड़े उन्हें खच्चर कहना ही सही रहेगा, बैठ कर आराम फरमा रहे थे और कुछ कश्मीरी कौऐ जो अन्य कौओं से आकर में बड़े थे उन खच्चरों की पूँछ के बाल अपनी चोंच में लिए हुए दिखाई दिए एवं कई कौए खच्चरों की पूँछ से बाल तोड़ रहे थे। निढाल खच्चर अपने आप को बचाने में असमर्थ लग रहे थे। अरु घाटी का यह अद्भुत दृश्य हम सभी ने अपने कैमरे में कैद कर लिया।
अरु घाटी जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित है। अरु घाटी पहलगाम से लगभग 12 किमी और लिद्दर नदी से लगभग 11 किमी की दूरी पर है। गाँव से घाटी तक का सौंदर्य बड़ा ही लुभाता है । जीप या कार का सफर इन वादियों को देखते- देखते ही कट जाता है। अद्भुत सौंदर्य, बर्फ से ढंकी हिमालय की चोटियाँ, अरु घाटी कश्मीर की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक मानी जाती हैं। यह स्थान घास के मैदानों में बसा हुआ है और इसकी खूबसूरत वादियां सभी को अपनी ओर आकर्षित करतीहै। ऐसा माना जाता है कि कोलाहोई ग्लेशियर की ट्रैकिंग की शुरुआत इसी गाँव से होती है। 
सोनमर्ग तक ट्रैकिंग करने में लगभग तीन दिन लगते हैं। घाटी के बगल ही एक अच्छा कैम्पिंग साइट है। यहाँ गर्मियों का मौसम शांत और बड़ा ही सुखद होता है। ठंड के मौसम में, बर्फ पड़ने (स्नो फाल) की वजह से ज़मीन पर चारों ओर बर्फ जम जाती है, तो यह जगह स्कीइंग करने की जगह बन जाती है। जिसका सभी आनंद उठाते हैं। यहाँ पर जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से नवंबर तक का माना जाता है। 
लिद्दर नदी
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पहलगाम के छोटे से कस्बे से होकर लिद्दर नदी बहती है। यहाँ से बर्फ से ढकी पीर पंजाल पर्वतमाला के नज़ारे साफ़ दिखाई पड़ते हैं। लिद्दर नदी के बहाव क्षेत्र के कारण ही इस घाटी को लिद्दर घाटी कहा जाने लगा। लिद्दर हिम नदी, विशाल सिंधु नदी की सहायक नदी है। नदी के साथ चलते-चलते, पहलगाम के मनोरम दृश्योंऔरअद्भुत नज़ारों का आनंद लिया जाता है। 
पर्यटकों के लिए ये नदी आकर्षण का केंद्र है। 
पर्यटक यहाँ मछली पकड़ने, वॉटर राफ्टिंग जैसे विभिन्न जलक्रीडाओं के साथ घुड़सवारी का अद्भुत आनंद उठाते हैं। 
लिद्दर नदी की दो सहायक नदियां हैं-लिद्दर पूर्व जो शेषनाग झील से बहती है और लिद्दर पश्चिम जो कोलाहोई ग्लेशियर से बहती है। इन दोनों सहायक नदियों का संगम पहलगाम कस्बे के निकट ही एक चौड़े समतल भाग में होता है। लिद्दर नदी अनंतनाग जिले के पेयजल का मुख्य स्रोत मानी जाती है। 
बेताब घाटी
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लिद्दर नदी द्वारा बनाई गई बेताब घाटी, हिमालय के बड़ी ही अद्भुत और मनोरम घाटी है। हरियाली के बीच से गुज़रती नदी और बर्फ से घिरे पहाड़ों को देखने का अपना अलग ही आनंद होता है। 
देवदार के घने वृक्ष और रंग- बिरंगे फूल सबका मन मोह लेते हैं।बेताब घाटी में सन् 1983 में सनी देओल और अमृता सिंह की फिल्म 'बेताब' की शूटिंग हुई थी। इसके बाद ही फिल्म के नाम पर इस घाटी का नाम रखा गया। यह घाटी प्रसिद्ध अमरनाथ यात्रा का एक पड़ाव है। यह पहलगाम की तीन खूबसूरत घाटियों में से एक मानी जाती है। 
संकलन/प्रस्तुति
आभा दवे
मुंबई





 

Friday 22 April 2022

मेरी कश्मीर यात्रा 10-4-2022 से 17-4-2022


मेरी कश्मीर यात्रा ( 10-4-2022 -17-4-2022)
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कश्मीर के सौंदर्य के बारे में बहुत नाम सुना था। जैसे ही पता चला कि  अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की ओर से कश्मीर टूर जा रहा है तो तुरंत कश्मीर जाने की तैयारी में जुट गई। विश्व मैत्री मंच की ओर से यह साहित्यिक टूर था जो 10 अप्रैल से 17 अप्रैल 2022 तक का था। 7 रातें और 8 दिन का टूर बहुत ही यादगार रहा। 
हम सभी छह साहित्यकार  मैं, ज्योति गजभिए, प्रभा शर्मा, लक्ष्मी यादव, रीता राम दास, लता तेजश्रवर (सपरिवार )10 अप्रैल की सुबह  ही दिल्ली पहुँच गए थे।  देशभर के अन्य जगहों से आए सभी साहित्यकार दिल्ली में एकत्रित हुए । सभी समय से पहले ही आ गए थे । दिल्ली से श्रीनगर की हम सभी की शाम की फ्लाइट थी । अलग-अलग जगह से आए सभी साहित्यकारों से मिलकर अच्छा लगा।  बातों- बातों में कब समय  बीत गया पता ही नहीं चला और हम सभी शाम की फ्लाइट से श्रीनगर रवाना हो गए। श्रीनगर पहुँचकर सुखद अनुभूति हुई। श्रीनगर की जिस होटल में हम सभी रुके थे वह बर्फ से ढकी पहाड़ियों के सामने ही थी। बर्फ से ढकी पहाड़ियों ने हम सभी का मन मोह लिया। सभी ने एक दूसरे की तस्वीरें खींच कर कैमरे में कैद कर ली।  दूसरे दिन हम सभी plam Spring होटल के लिए रवाना हुए जहाँ पर साहित्यक सम्मेलन का आयोजन किया गया था।  अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री  मंच की संस्थापिका एवं अध्यक्षा आदरणीया संतोष श्रीवास्तव जी ने सभी साहित्यकारों का बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया । भोपाल निवासी संतोष  श्रीवास्तव जी के सानिध्य में ही यह कश्मीर टूर आयोजित किया गया था। श्रीनगर में आयोजित साहित्यिक सम्मेलन में , "साहित्य में पर्यटन" विषय रखा गया था जिस पर शोभना श्याम जी, संतोष श्रीवास्तव जी, साकेत सुमन चतुर्वेदी जी ,   प्रमिला वर्मा जी, रीता राम दास जी एवं जम्मू विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर एवं इस  कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर अजय कुमार सिंह जी ने पर्यटन पर अपने विचार व्यक्त कर पर्यटन के महत्व पर प्रकाश डाला।  सभी प्रमुख वक्ताओं के वक्तव्य के बाद पुस्तक लोकार्पण एवं कविता पाठ किया गया। डॉ ज्योति गजभिए की पुस्तक "वार्ड नंबर 46," कहानी संग्रह, पदमा मोटवानी की "जीवन तरंग" एवं लता तेजेश्वर जी की "चाँदनी रात में तुम"  काव्य संग्रह का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण के बाद कविता पाठ किया गया जिसमें मुझे भी कविता पढ़ने का  सुअवसर प्राप्त हुआ। कुशलता पूर्वक संचालन डॉ प्रभा शर्मा एवं अंजना श्रीवास्तव जी का रहा एवं आभार आरती झा जी ने व्यक्त किया। 

सफलतापूर्वक कार्यक्रम संपन्न होने के बाद हम सभी सोनमर्ग के लिए निकल गए। सोनमर्ग पहुँचकर वहाँ के सौंदर्य का आनंद लिया और सोनमर्ग में ही होटल में रात बिताई। अगले दिन सुबह का नाश्ता कर हम सभी फिर श्रीनगर के लिए रवाना हुए बीच में ही माता खीर भवानी जी मंदिर, निशात गार्डन , शालीमार गार्डन, चश्मा शाही, परी महल, बॉटनिकल गार्डन, टयूलिप गार्डन का आनंद उठाते हुए श्रीनगर होटल पहुँचे। रात्रि भोज करने के बाद सभी सुबह गुलमर्ग जाने के लिए जल्दी ही नींद की आगोश में चले गए। सुबह नाश्ता करने के बाद फिर गुलमर्ग के लिए रवाना हुए। रास्ते भर वहाँ के सौंदर्य को निहारते हुए गुलमर्ग पहुँचे। जहाँ पर हॉर्स राइडिंग और  Gondola Ride का लुफ्त उठाते हुए बर्फ से ढके पर्वतों का आंनद उठाया और स्लेज गाड़ी पर सवार होकर ऊपर से नीचे तक आए। स्लेज गाड़ी पर नीचे आते हुए मैं दो -तीन बार बर्फ पर गिरी और हल्की सी हथेली पर चोट भी आई, पर प्राकृतिक सौंदर्य के सामने यह चोट भी भूल गई । बर्फ आच्छादित पहाड़ों पर मजा उठाने के बाद मौसम ने अपना रंग बदला और चारों तरफ कोहरा छा गया । बर्फ के पहाड़ भी कोहरे से ढक गए थे। हम सभी Gondola Ride से वापस  मैदानी क्षेत्र में आ गए। वहाँ से आने पर पता चला हमारी एक सदस्या अभी तक वापस नहीं आई है उन्हें ढूँढने के लिए , जिसने हम सभी को Gondola Ride तक पहुँचाया था  और हम सभी की जिम्मेदारी ली वे हमारी गुमशुदा सदस्या की खोज में पुनः Gondola Ride से ऊपर गए और बर्फीले पहाड़ों पर उन्हें ढूँढने की कोशिश की पर हमारी गुमशुदा सदस्या कहीं दिखाई नहीं दी । एक- डेढ़ घंटे के बाद  संतोष जी एवं सभी  सदस्य हमारी  शीला जी को पाकर खुश हुए । सभी के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी । बस में बैठकर सभी प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हुए वापस होटल आ गए। हम सभी ने बर्फ के पहाड़ों पर जाने के लिए माता खीर भवानी मंदिर के पास से कपूर खरीदा था ताकि उसको सूँघते हुए बर्फ के पहाड़ों पर चढ़ सकें और किसी को साँस लेने में दिक्कत न हो पर कपूर की जरूरत ही नहीं पड़ी सभी आराम से बर्फीले पहाड़ों पर पहुँच गए थे और उसका मजा लिया । बीती खुशनुमा यादों के बाद हम सभी  अगले दिन पहलगाम के लिए रवाना हुए । प्राकृतिक दृश्यों के साथ- साथ हम सभी ने
 सिंधु नदी, झेलम नदी का भी आनंद उठाया।  अनंतनाग के आगे ही सेव के बगीचे देखें और ताजा सेव का जूस पिया।  रास्ते में ही एक जगह रुक कर केसर और  कश्मीरी कावा (चाय ) की खरीदारी की। कावा पेय का आंनद उठाया।  बाद में सभी सदस्य शंकराचार्य मंदिर गए  । वहाँ पर  200 से अधिक सीढियाँ चढ़ कर  शिवलिंग के दर्शन किए। चूंकि शंकराचार्य मंदिर तक  बस नहीं जाती इसलिए सभी को  बस से उतर कर अपना -अपना ऑटो करके मंदिर तक जाना पड़ा । एक आटो में 4 लोगों बैठे थे । तीन पीछे और एक सामने। सभी सदस्यों ने जब शंकराचार्य मंदिर के दर्शन कर लिए उसके बाद सभी ऑटो में बैठ कर बस स्थान तक पहुँच गए । वहाँ से निकल कर सभी पहलगाम के मार्केट में शॉपिंग करने के लिए आ गए। सभी ने अपने -अपने पसंद की कश्मीरी शॉल ,ड्रेस, स्वेटर,फिरन आदि खरीद कर पहलगाम में खरीदारी का मजा लिया और अन्य स्थानों पर होते हुए वापस  होटल आ गए। अपनी यात्रा को जारी रखते हुए अगले दिन हम सभी  होटल में सुबह का नाश्ता करने के बाद  अरु वेली एवं अन्य स्थानों को देखने के लिए निकल गए। अरु वेली पहुँच कर वहाँ के सौंदर्य के दर्शन किए और Lidder River की बहती हुई धारा में खो गए । सभी ने खूब तस्वीरें ली और वीडियो भी बनाए । चंदनवाड़ी जहाँ से अमरनाथ यात्रा शुरू होती है वहाँ के बर्फीले पहाड़ों का लुत्फ उठाते हुए बेताब वेली पहुँचें। बेताब वेली में फिल्म बेताब की शूटिंग की गई थी। ऐसे तो पहले भी कश्मीर के कई स्थलों को देख चुके थे जहाँ पर फिल्मों की शूटिंग की गई थी। बेताब वेली पर ज्यादा न रुकते हुए वहाँ के सौंदर्य को कैमरे में कैद कर आगे निकल पड़े। रास्ते भर प्राकृतिक दृश्यों का आनंद उठाते हुए वापस पहलगाम होटल आ गए। कश्मीर यात्रा के आखिरी पड़ाव को यादगार बनाते हुए हम सभी सुबह का नाश्ता करने के बाद अन्य स्थलों पर रुकते हुए लाल चौक (श्रीनगर )पहुँचे। लाल चौक वह स्थान है जहाँ भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1948 में देश को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारतीय राष्ट्र ध्वज फहराया था। लाल चौक में अन्य घटनाएँ भी घटित हो चुकी हैं जो यादगार के रूप में आज भी ताजा हैं। लाल चौक पर 1980 में घंटाघर बनाया गया था। जिसको हम सभी ने देखा। लाल चौक का बाजार  खरीदारी के लिए प्रसिद्ध है वहाँ पर कई सदस्यों ने उतरकर खरीदारी की और बाकी हम सब बस में बैठकर लंच के लिए निकल गए। जिस जगह पर लंच किया था उसी के बगल में एक ऊनी कपड़ों की दुकान थी वहाँ पर कई सदस्यों ने शापिंग की । लाल चौक पर जो सदस्य खरीदारी के लिए उतर गए थे वे अपनी खरीदारी पूरी करके वापस उसी स्थान पर आ गए जहाँ पर हम सभी बस में उनका इंतजार कर रहे थे। हँसते -गाते ,बतियाते हम सभी डल लेक पर आ पहुँचे । वहाँ पर पहुँच कर सूटकेस,बैग एवं सामान के साथ सभी  शिकारे से  हाउसबोट की ओर रवाना हुए । डल लेक पर शिकारे की सवारी करते हुए बहुत अच्छा लग रहा था । डल लेक का सौंदर्य निहारते हुए हम सभी हाउसबोट पर आ गए । कश्मीरी यात्रा का हम सभी का आखिरी पड़ाव हाउसबोट पर ही बीता । हम सभी सदस्य  अलग-अलग हाउसबोट पर रुके थे । हमारी हाउसबोट पर तीन अलग-अलग कमरों के अलावा ड्राइंग रूम और डाइनिंग हॉल भी था, जो अंदर से सुसज्जित था । अखरोट  की लकड़ी से बना नक्काशी दार फर्नीचर बेहद ही खूबसूरत था।  ड्राइंग रूम में एक मेज़ रखी थी , कहा जाता है कि जब सुभाष चंद्र बोस वहाँ पर आए थे तो उन्होंने उस मेज़ का इस्तेमाल किया था। हम सभी ने उस मेज़ के साथ अपनी तस्वीरें लेकर गौरव का अनुभव किया। बाकी सदस्यों की हाउसबोट भी एक से बढ़कर एक थी और अंदर से सुंदर तरीके से सुसज्जित थी। हाउसबोट पर पहुँचकर हम सभी ने वहाँ की कश्मीरी चाय का आनंद उठाया और उसके बाद शिकारे पर घूमने निकल पड़े। डल झील का आनंद उठाते हुए हम लोग चार चिनार  स्थल पर पहुँचे । वहाँ पर चार चिनार के पेड़ डल झील का सौंदर्य बढ़ाते हैं। उस स्थान पर कई फिल्मों की शूटिंग भी होती है । वहाँ पर हम लोगों ने अपनी- अपनी तस्वीरें खिंचवा कर चार चिनार के सौंदर्य को कैमरे में कैद कर लिया और वापस हाउसबोट पर आ गए।  हाउसबोट पर आने के थोड़ी देर बाद ही दूसरे शिकारी से हम सभी मीना बाजार के लिए निकल पड़े जो डल लेक की शान है। शिकारे से मीना बाजार का आनंद उठाया , खरीददारी की , शिकारे पर चाय का मजा लेते हुए वापस हाउसबोट पर आ गए। रात्रि भोज करने के पहले हाउसबोट की छत पर जाकर  चाँद के सौंदर्य को झील के साथ कैमरे में कैद कर लिया। रात्रि की नीरवता का  सौंदर्य बड़ा ही सुखद लग रहा था। रात्रि भोज एवं गपशप करने के बाद हम सभी नींद के आगोश में चले गए । सुबह जल्दी उठना था दिल्ली रवाना होने के लिए। कश्मीर की सुखद यादों को समेटे हुए हम सभी सुबह श्रीनगर एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए। कश्मीर से दिल्ली तक का सफर सभी ने कश्मीर की सुखद यादों के साथ तय किया और दिल्ली से सभी अपनी -अपनी फ्लाइट के समयानुसार  अपने -अपने शहरों  को सकुशल लौट के गए। कश्मीर की सुखद यात्रा हमेशा ही याद रहेगी।
श्रीनगर, सोनमर्ग, गुलमर्ग, र्खलनमर्ग ,टँगमर्ग, पहलगाम , हाउसबोट, शिकारा आदि यादों में झिलमिलाते रहेंगे।

अपनी लिखी हुई इन पंक्तियों के साथ अपनी बात यही समाप्त करती हूँ-

अद्भुत सौंदर्य धरा पर बिखरा पड़ा
बस एक नजर  उसे निहारो तो ज़रा।

आभा दवे
मुंबई






Friday 8 April 2022

माया गोविंद जी को उनके गीतों के माध्यम से श्रद्धांजलि

माया गोविंद जी को उनके गीतो के माध्यम से विनम्र श्रद्धांजली ------------------------------------------- सुप्रसिद्ध लेखिका, कवयित्री, गीतकार माया गोविंद जी का निधन 7अप्रैल 2022 गुरुवार के दिन हो गया। उनके निधन का समाचार स्तब्ध कर गया। माया गोविंद जी के साथ बहुत सुखद यादें जुड़ी हुई हैं। वे लेखनी की धनी के साथ- साथ अच्छे व्यक्तित्व की धनी थी । उनसे जब भी मुलाकात हुई वे बड़ी आत्मीयता के साथ मिलती थीं। उनकी रचनाओं के साथ- साथ उनके वक्तव्य को सुनने का अवसर भी प्राप्त हुआ। वे मधुर आवाज की भी धनी थी । बहुमुखी प्रतिभा संपन्न माया गोविंद जी ने 350 से अधिक फिल्मी गीत लिखे। उन्होंने टीवी के लिए भी कलम चलाई 'महाभारत' जैसे यादगार सीरियल के लिये गीत, दोहे और छंद लिखे एवं 'विष्णु पुराण', 'किस्मत', 'द्रौपदी', और 'आप बीती जैसे सीरियल में अपनी लेखनी का लोहा मनवाया। इसके अलावा उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। उन्हें फिल्म "आरोप" में गीत लिखने का पहला अवसर मिला जिसने फिल्मों में गीत लिखने के द्वार खोल दिए। उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत लिखे जो लोगों के दिलों को छू गए। माया गोविंद जी दिव्य लोक में विलीन हो गईं हैं पर वे हमेशा अपने गीतों एवं रचनाओं के माध्यम से लोगों के दिलों में हमेशा रहेंगी। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रस्तुत है उनके लिखे कुछ गीत जो आज भी अपना अलग स्थान रखतें हैं एवं दिलों को छू जाते हैं🙏🙏 1)ये मत जानियो तुम बिछुड़े मोहे चैन जैसे बन की लकड़ी सुलगती हो दिन रैन कजरे की बाती असुवन के तेल में
आली में हार गयी अँखियाँ के खेल में कजरे की बाती असुवन के तेल में आली में हार गयी अँखियाँ के खेल में कजरे की बाती चंचल से नैनो में काजल को आँज कर बिखरी इन पलको में रजनी को बाँध कर सिन्दूरी आंचल में तारो को ताक कर आधरो के प्यालो में चुंबन को ढाल कर अटका कर सबके मन प्रीत की गुलेल में मारी ना जौ कही अपने ही इस खेल में सपने ही टूट गये इस तेल मेल में आली में हर गयी अँखियाँ के खेल में कजरे की बाती तन की सुराह में यौवन की हाला चितवन में मदहोशी अंगो में ज्वाला चल चल छलके जो मदिरा का प्याला गोरी तू लगे हैं पूरी मधुशाला नशा ही नशा हैं इन अंगूरी बेल में प्याला और मदिरा इन दोनों के मेल में नशा ही नशा हैं इन अंगूरी बेल में विराह के फूल हैं जीवन की बेल में आली में हर गयी अँखियाँ के खेल में कजरे की बती. फिल्म-सावन को आने दो (1979) 2)नैनों में दर्पण है दर्पण में कोई देखूँ जिसे सुबह शाम बोलो जी बोलो ये राज़ खोला हम भी सुने दिल को थाम या तो है धरती या है गगन या तो है सूरज या है पवन उहूँ उसका तो साजन है नाम नैनों में दर्पण है दर्पण में कोई देखूँ जिसे सुबह शाम मस्ती में गए दिल को लुभाए कानो में मिश्री सी घोल बोलो जी बोलो ये राज़ खोला मेरा भी मन आज डोले या तो कोयल की है रागिनी या तो पायल है या बांसुरी न उसका तो सजनि है नाम नैनों में दर्पण है दर्पण में कोई देखूँ जिसे सुबह शाम बहकी बहकी चाल है उसकी झूमे वो आवारा बोलो जी बोलो ये राज़ खोलो किसकी तरफ है इशारा बोलो किसकी तरफ है इशारा या तो जोगी है या पागल या तो बदल है या आँचल उहूँ उसका तो प्रियतम है नाम नैनों में दर्पण है दर्पण में कोई देखूँ जिसे सुबह शाम. फिल्म-आरोप (1974 ) 3)चंदा देखे चंदा, तो वो चंदा शर्माए गोरी गोरी चांदनी में, गोरी जब मुस्काए जिया बोले पिया, तो ये जिया शर्माए गोरी गोरी चांदनी में, गोरी जब मुस्काए चाँद से माथे पे बिंदिया झिलमिलाए ऐसे चाँद सूरज रात में एक साथ चमके ऐसे जी करे ये उमर यूहीं देखते कट जाए जिया बोले पिया...नैन बन जाती है घूँघट मन दुल्हन की आशा बांचते हैं जब नयन तेरे नयन की भाषा नैन में छुप कर मेरे मुझको तू मुझसे चुराए चंदा देखे चंदा...प्रीत के रंग में रंगा है तेरा उड़ता आंचल मैने बांधा है इसी में एक दीवाना पागल आंचल की छाया में ये पागल जिये मर जाए जिया बोले पिया... फिल्म- झूठी (1985) 4) तेरी मेरी प्रेम कहानी किताबों में किताबों में किताबों में भी न मिलेगी किताबों में भी न मिलेगी तेरे मेरे प्यार की खुशबू गुलाबों में गुलाबों में गुलाबों में भी न मिलेगी गुलाबों में भी न मिलेगी तेरी मेरी प्रेम कहानी प्रेम कहानी हो.....सूने सूने सूने सूने जीवन में तूने प्यार की जोत जगाई तूने प्यार की जोत जगाई हो....जीवन में अब जीवन है ये बात समझ मे आई हां ये बात समझ में आई मिल जाएं जब ऐसे हस्ती मिल जाएं जब ऐसे हस्ती बस्ती है तब दिल की बस्ती ऐसी हस्ती ऐसी हस्ती ज़िन्दपारस्ती नवाबों में नवाबों में नवाबों में भी न मिलेगी नवाबों में भी न मिलेगी तेरी मेरी प्रेम कहानी किताबों में किताबों में किताबों में भी न मिलेगी किताबों में भी न मिलेगी हो...आएंगे आएंगे कल राहों में हां मोड़ हज़ारों अनजाने मोड़ हज़ारों अनजाने हो....साथ तेरा मैं छोडूंगा ना बाकी और खुदा जाने बाकी और खुदा जाने ऐसी निराली प्रीत हमारी ऐसी निराली प्रीत हमारी देखेगी ये दुनिया सारी प्रीत हमारी प्रीत हमारी ऐसी नशीली शराबों में शराबों में शराबों में भी न मिलेगी शराबों में भी न मिलेगी तेरी मेरी प्रेम कहानी किताबों में किताबों में किताबों में भी न मिलेगी किताबों में भी न मिलेगी तेरे मेरे प्यार की खुशबू गुलाबों में गुलाबों में गुलाबों में भी न मिलेगी गुलाबों में भी न मिलेगी फिल्म-पिघलता आसमान (1985) 5)अब चरागों को का कोई काम नहीं अब चरागों को का कोई काम नहीं तेरे नैनों से रौशनी सी है तेरे नैनों से रौशनी सी है चन्द्रमा निकले अब या न निकले चन्द्रमा निकले अब या न निकले तेरे चेहरे से चांदनी सी है तेरे चेहरे से चांदनी सी है हुस्न ए कश्मीर जादु ए बंगाल हुस्न ए कश्मीर जादु ए बंगाल तू सरापा किसी शायर का ख्याल तूने जर्रे को सितारा समझा तूने जर्रे को सितारा समझा ये है सजन तेरी नजरो का कमाल तेरी सूरत में जालु अगर लैला तेरी सूरत में जालु अगर लैला जानेमन तूही सोहणी सी है तेरे नैनों से रौशनी सी है एक ख्वाहिश एक ही अरमा एक ख्वाहिश एक ही अरमा रात दिन बस तेरी पूजा करना तेरे चरणो की बन रहूँ दासी तेरे चरणो की बन रहूँ दासी तेरे चरणो में ही जीना मरना मेरे सपनो की तू महारानी मेरे सपनो की तू महारानी तेरी सूरत में मोहनी सी है तेरे नैनों से रौशनी सी है रात सपने में कुछ अज़ब देखा शर्म आती है ये बताते हुए एक सीपी में छुप गया मोती जाने कब ओष में नहाते हुए तूने खुशियों से भर दिया आँगन तूने खुशियों से भर दिया आँगन तेरी ये बात रागिनी सी है तेरे नैनों से रौशनी सी है हर जनम में रहेगा साथ तेरा अय मेरी सीता सावित्री नाम तेरा मैं मंत्र कर लूंगा गायत्री गायत्री ही गायत्री तेरी बाहों में जो ये दम निकले तेरी बाहों में जो ये दम निकले मौत भी मेरी जिंदगी सी है मौत भी मेरी जिंदगी सी है चन्द्रमा निकले अब या न निकले अब चरागों को का कोई काम नहीं तेरे चेहरे से चांदनी सी है तेरे नैनों से रौशनी सी है. फिल्म-बावरी 6)मुझे ज़िन्दगी की दुआ न दे मुझे ज़िन्दगी की दुआ न दे मेरी ज़िन्दगी से बनी नहीं मेरी ज़िन्दगी से बनी नहीं कोई ज़िन्दगी पे करे यकी मुझे ज़िन्दगी पे यकीं नहीं मेरी ज़िन्दगी से बनी नहीं ये सफ़र भी कैसा सफ़र है ये मैं कभी कभी तो कही कही मुझे जिस सनम की तलाश थी वो मिला मगर वो मिला नहीं मैं वो बात हूँ मैं वो बात हूँ तो बनी नहीं मैं वो रात हूँ जो कटी नहीं मुझे ज़िन्दगी की दुआ न दे मेरी ज़िन्दगी से बनी नहीं मेरी ज़िन्दगी से बनी नहीं। फिल्म-गलियों का बादशाह 7)ओ फूलों के देश वाली अंग अंग तेरा फूलों वाला जैसे गुलाबों की हो माला पंछी सी चहके फसलों सी लहके सरसो सी फूले चम्पा सी महके आँचल में बिजली नैन मे चपलता चाल में हिरनी की चंचलता जी चाहता है तुझको बिठाकर पतझड़ का दर्द कहूँगा अब तो मैं चुप न रहूँगा तू चिर यौवन अन्नत हो क्यू की तुम ऋतु बसंत हो मुझको तुम्हारा ही हैं इंज़ार क्या तुमको मालूम हैं पतझड़ को कितना होगा बसंत की ऋतु से प्यार. फिल्म-आरोप प्रस्तुति/संकलन आभा दवे मुंबई