Tuesday 23 July 2019

कविता -अंतर /आभा दवे

अंतर
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एक बेटी और बहू में 
वैसे तो कोई फर्क नहीं
पर अनजाने ही अक्सर
हो जाता है ये *अंतर*
जो बेटी के  लिए सही है
वही बहू के लिए गलत
हो जाता है अक्सर ही
यही बात बेटे और दामाद
पर भी लागू हो जाती है
दामाद बेटी के साथ घर
का काम करे तो खुशी 
मिलती है माता-पिता को
पर यदि एक बेटा अपनी
पत्नी का घर में हाथ बँटा दे
तो सुनना पड़ता है बहू को
इस *अंतर* को मिटाना होगा
बहु को भी बेटी बनाना होगा
आत्म सम्मान बना रहे उसका
कर सके सभी को ह्रदय से आत्मसात
सभी के मन में जगाए विश्वास
हर घर का कोना-कोना चहकता रहे
बहू और बेटी दोनों से महकता रहे ।



*आभा दवे*

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