Friday 11 October 2019

मन का कठघरा कविता /आभा दवे

मन का कठघरा*
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मन के कठघरे में न ताला लगाना
उसके संग हंसना और उसे हंसाना
उसके साथ ही जीवन गान गाना है
वहीं पर छुपा पड़ा है अद्भुत खजाना ।

मन से मन के द्वार तले सागर हिलोर मारे
विचारों के भंवर में सदा ही हाथ-पैर मारे
खुशी और गम के बीच होता संगम वहाँ
रहता है वह वहाँ  ईश्वर के  नाम के सहारे ।

मन का कठघरा नई आशाओं से भरा
रखना है उसे  ऐसे ही सदा  हरा -भरा
अंधकार है वहाँ तो नई रोशनी जगाना
अपनी जिंदगी को बनाना सोने सा खरा ।



आभा दवे
12-10-2019 शनिवार




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