Wednesday 9 October 2019

सुकून /चैन कविता /आभा दवे

सुकून/चैन /आभा दवे 


बीते हुए दिन तो गुजर गए आराम से
अब आगे आने वाले दिन सुकून से गुजर जाए तो अच्छा हो
हर तरफ शोर शराबा है , बेचैनी ,अनिद्रा है
चमन के फूलों को मसल रहे हैं सभी
खिलती कलियाँ कहीं मुरझा रही देखो
लोगों के दिलों को अविश्वास ने आ घेरा है
ना जाने कहाँ  रैन बसेरा है
तन और मन सभी के अंदर से घायल हैं
मन के सागर में तूफ़ानों का लगा  मेला है
सब साथ  में हैं पर हर इंसान अकेला है
मोबाइल के मायाजाल ने भी सबको आ घेरा है
कहाँ सुकून कहाँ चैन का ठेला है
इन्हीं के साए में अब अच्छे से वक्त गुजर जाए तो अच्छा हो ।

*आभा दवे*



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