Wednesday 13 July 2022

गुरू पूर्णिमा पर विशेष-आभा दवे

 गुरू पूर्णिमा पर विशेष 

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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥


संतो ने गुरु को सर्वश्रेष्ठ माना है। गुरु जो भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान देकर जीवन में नया प्रकाश फैलाते हैं। प्राचीन काल में गुरु-  शिष्य परंपरा थी । गुरु की आज्ञा का पालन करना शिष्य का प्रथम कर्तव्य था। शिष्य के लिए गुरु ही सब कुछ होता था । गुरु द्वारा जो मार्ग दिखाया जाता था शिष्य उसी पर चल पड़ता था और अध्यात्म की ऊँचाई को पा जाता था। अब समय के साथ-साथ सब कुछ बदल गया है। गुरु और शिष्य की परंपरा पहले जैसी  नहीं रही। सही गुरु को पहचानना बहुत कठिन हो गया है। अपनी बुद्धि और विवेक के द्वारा ही इस पथ पर आगे बढ़ा जा सकता है। कहते हैं कि अच्छा अध्ययन, भ्रमण और निरीक्षण एवं समय की पहचान जीवन में आगे बढ़ना में सहायक होती है।  जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्र में प्रगति के पथ पर ले जाती है। हमारे ज्ञानचक्षु अच्छे- बुरे का अनुभव करा कर आध्यत्मिकता से स्वत: ही जुड़ जाते हैं और हमें 'अप्प दीपो भव:' का एहसास कराते हैं। भगवान दत्तात्रेय ने सभी से कुछ न कुछ ग्रहण कर उनको अपना गुरु माना है।

भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए थे। वे कहते थे कि जिस किसी से भी जितना सीखने को मिले, हमें अवश्य ही उन्हें सीखने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। उनके 24 गुरुओं में  पृथ्वी, सूर्य, पिंगला, वायु, मृग, समुद्र, पतंगा, हाथी, आकाश, जल, मधुमक्खी, मछली, बालक, कुरर पक्षी, कबूतर, अग्नि, चंद्रमा, कुमारी कन्या, सर्प, तीर (बाण) बनाने वाला, मकडी़, भृंगी, भौंरा (भ्रमर)  और अजगर शामिल हैं। जो हमें कुछ न कुछ सीख दे जाते हैं।

सूर्य- सूर्य अलग-अलग दिखाई देता है, वैसे ही आत्मा भी एक ही है, लेकिन वह कई रूपों में हमें दिखाई देती है।
 
पृथ्वी- पृथ्वी से हम सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। 

पिंगला-  पिंगला नाम की  एक वेश्या थी । भौतिक सुख सुविधाओं का त्याग कर वह आध्यात्मिक राह पर निकल पड़ी। उसे इस बात का ज्ञान हो गया था कि सच्चा सुख ईश्वर की भक्ति में ही है । उसके वैराग्य से भगवान दत्तात्रेय प्रभावित हुए। 

वायु- दत्तात्रेय  जी ने के अनुसार वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है, उसी प्रकार हमें अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी अपनी अच्छाइयों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

मृग- मृग अपनी मौज-मस्ती, उछल-कूद में इतना ज्यादा खो जाता है कि उसे किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे  यह सीख मिलती है हमें ज्यादा लापरवाह नहीं होना चाहिए। अपने आसपास की घटनाओं का भी ध्यान रखना चाहिए।

समुद्र- समुद्र की  लहरें  निरंतर गतिशील रहती हैं। समुद्र की लहरों से सीख मिलती है जीवन के उतार-चढ़ाव में भी हमें भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।

पतंगा- जैसे पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है, उसी प्रकार रंग-रूप के आकर्षण और झूठे मोहजाल में हमें उलझना नहीं चाहिए। 
 
 हाथी-  हाथी हथिनी के प्रति आसक्त हो जाता है, उसे देखकर सीख मिलती है  कि तपस्वी पुरुष और संन्यासी को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए।

आकाश-  आकाश से सीख मिलती  कि हर देश, परिस्थिति और काल में लगाव से दूर रहना चाहिए।

जल- भगवान दत्तात्रेय के अनुसार  जल  हमें पवित्रता सिखाता है । हमें सदैव  जल जैसा पवित्र रहना चाहिए।
 
मधुमक्खी-  मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती हैं पर उस शहद को कोई और निकाल कर ले जाता है जो इस बात की सीख देता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।

मछली- मछली  काँटे में  लगे मांस के टुकड़े को  देख कर खाने के लिए चली जाती है और अपने प्राण गँवा बैठती है । जिससे सीख मिलती है हमें स्वाद को  महत्व न देते हुए स्वास्थ्य की दृष्टि से भोजन ग्रहण करना चाहिए।

कुरर पक्षी- कुरर पक्षी  अपनी चोंच में माँस के टुकड़े 
दबाए रहता है पर जब दूसरा  बलवान पक्षी उस माँस 
उससे छीन लेते हैं, तब मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है।  हमें कुरर पक्षी की तरह ही लोभ का त्याग करना है।

कबूतर- दत्त भगवान ने  देखा कि कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है, तो इससे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा प्रेम, स्नेह दु:ख का कारण बनता है।

बच्चे ,बालक -  छोटे बच्चे चिंता से मुक्त हमेशा प्रसन्न रहते हैं  उन्हें किसी भी बात की चिंता या भय नहीं सताता है। बस वैसे ही छोटे बच्चों की तरह हमें भी हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।

 आग- दत्तात्रेयजी ने आग से सीखा कि जीवन में कैसे भी हालात हो, हमारा उन हालातों में ढल जाना ही उचित है। 
 
 चन्द्रमा- चंद्रमा के घटने या बढ़ने से उसकी चमक और शीतलता  हमेशा एक जैसी रहती है, वैसे  ही आत्मा कभी बदलती नहीं है।

कुमारी कन्या- भगवान दत्तात्रेय ने एक बार एक कुमारी कन्या देखी, जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थीं। 
तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़िया ही निकाल दी। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रहने दी। उसके बाद उस कन्या ने आराम से बिना शोर किए धान कूटा। हमें भी एक चूड़ी की भांति अकेले ही रहना चाहिए और निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। 
 
तीर बनाने वाला- दत्तात्रेय ने एक ऐसा तीर बनाने वाला देखा, जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि 
उसे राजा की सवारी निकल गई  उसका आभास ही नहीं हुआ। अत: हमें अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए।

साँप- भगवान दत्तात्रेय ने साँप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। 
एक ही स्थान पर न रुकते हुए भ्रमण द्वारा  ज्ञान बाँटते रहना चाहिए।
 
मकड़ी-  भगवान दत्तात्रेय ने मकड़ी से सीख ली कि वह  स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल जाती है। ठीक इसी तरह भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।

भृंगी कीड़ा- दत्तात्रेय ने इस कीड़े से सीखा कि अच्छा हो या बुरा  , हम जैसा सोचेंगे अपना मन वैसा ही हो जाता है।

भौंरा- भगवान दत्तात्रेय ने भौंरे से सीखा कि जिस तरह भौंरा फूलों से पराग ले लेता है। उसी प्रकार जहाँ भी सार्थक बात सीखने को मिले, उसे तत्काल ग्रहण कर लेना चाहिए। 

अजगर- भगवान दत्तात्रेय ने अजगर से सीख ली   जीवन में हमें संतोषी बनना चाहिए । जो मिल जाए, उसे खुशी से  स्वीकार करना चाहिए। 

भगवान दत्तात्रेय जी के ये चौबीस गुरु हमें भी ज्ञान का रास्ता दिखाते हैं। जिस प्रकार भक्ति और प्रेम जोर- जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता उसी तरह किसी को भी जोर -जबरदस्ती से गुरु स्वीकार नहीं किया जा सकता। अपने विवेक एवं श्रद्धा और विश्वास के बल पर ही गुरु -शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाया जा सकता है और अपने जीवन पथ को निष्कंटक  बनाया जा सकता है । जहाँ से आध्यात्मिक यात्रा आनंदमय हो और कहा जा सके-

गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागूँ पांय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।

आभा दवे
मुंबई 





 



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