Tuesday 8 October 2019

लघुकथा - समर्पण /आभा दवे

समर्पण*
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शीलू की नौकरी को आज पूरे एक साल हो गए थे आज वह बेहद खुश थी । उसने बड़ी कठिनाई से नर्स का कोर्स किया था । एक अस्पताल में वह नर्स का काम कर रही थी । अपनी उम्र के पच्चीस साल उसने अपनी मर्जी से ही बिताए थे । साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी वह अपनी जिद्द के कारण नर्स बनी थी ताकि गाँव से निकलकर शहर में नौकरी कर सके और अपने पैरों पर खड़ी हो सके ।

ऑफिस के बाद जैसे ही शीलू घर आई तो कुछ मेहमान बैठे हुए थे उनमें उसे अपनी माँ भी दिखाई दी । शीलू ने अपनी माँ को आवाज देते हुए कहा-"माँ तुमने बताया नहीं तुम गाँव से आज यहाँ आ रही हो तुम्हें अचानक जबलपुर में क्या काम आ गया?"

शीलू की माँ ने उसे आँखों से  चुप रहने का इशारा करते हुए कहा-  तेरे लिए शादी के रिश्ते की बात चल रही है ,यह तेरे ससुराल वाले  हैं मैंने तुम्हारा रिश्ता गाँव में ही तय कर दिया है । लड़के की अपनी एक छोटी सी किराने की दुकान है । " कितना कह कर शीलू की माँ ने  लड़के की फोटो शीलू के हाथ में पकड़ा दी ।

शीलू का चेहरा तमतमा गया फिर भी उसने अपनी आवाज को संयत कर कहा-"माँ मैं इस शादी के लिए तैयार नहीं हूँ और न ही तुम्हारी तरह अपना जीवन इन लोगों को समर्पित कर सकती हूँ । जब समय आएगा तब मैं अपने कार्यों का *समर्पण*अवश्य करुँगी पर अभी नहीं।" लड़के की माँ ने शीलू की बातें सुनकर बड़े ही प्रेम से उसके सिर पर हाथ रखा और कहा- "घबरा मत  बेटी , मेरा बेटा भी पढ़ा- लिखा है तुम्हें गाँव आने की जरूरत नहीं पड़ेगी न ही *समर्पण* करने की, मेरा बेटा शहर आ जाएगा ।" शीलू की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए उसने अपनी होने वाली सास के पैर छू लिए ।

*आभा दवे*

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