मृगतृष्णा
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मृगतृष्णा सी आस लिए
बढ़ते कदम है तेज रफ्तार लिए
पा जायें वो मंजिल शायद
जो सपने में बैठी है प्यास लिए ।
मन चंचल रहता हरदम
बैठा है नया फिर ख्वाब लिए
ना जाने दुनिया दारी
ना जाने रीत पुरानी ।
आगे बढ़ना ठाना है
चट्टानों से भी टकराना है
ये सच भी जाना है
मिट्टी में भी मिल जाना है
पर मृगतृष्णा सी आस लिए
बढ़ते कदम तेज रफ्तार लिए ।
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