Sunday 30 June 2019

कविता -यादों का काँरवा

यादों का कारवाँ
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वक्त के साए में बचपन की यादों का कारवाँ

अब भी चलता है हरदम मेरे साथ

मासूम सा बचपन दिल में कहीं बैठा हुआ है

मेरी उँगलियों को थामे हुए

जो अक्सर नन्हे कदमों की चाप

कानों को सुना जाता है

माँ का आँचल और पिता का प्यार 

उस में नजर आता है

भाई -बहनों के संग लुका -छिपी का खेल

नजरों से नहीं जाता है 

वो पल बहुत याद आता है

जो अब भी मन में करवट ले रहा है

कागज की कश्ती और बरगद की डाल का वो झूला

अब कहाँ  नजर आता है ?

अब तो बस जीवन सिमटा सा नजर आता है

जीवन की शाम दस्तक दे रही है

नए  तोहफे जीवन को दे रही है

पर रुकता नहीं यादों का कारवाँ

बचपन की मीठी सी यादें

अब भी  मुझे लोरी दे रही है 

चंदा मामा की  वो कहानी 

यादों में अब भी सोई पड़ी है ।


आभा दवे 



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