*अंतर्द्वंद*
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देह का अंतर्मन से जुड़ा हुआ है नाता
जो न जाने हम से क्या-क्या है करवाता
रहता है अंतर्द्वंद हमेशा दिल और दिमाग में
एक चाहे अच्छे कर्म करना
और दूजा बोले तू भी स्वार्थी बनना
यह जग बड़ा ही निराला है
सब जीते हैं अपनी खुशियों की खातिर
दुख का होता नहीं बंटवारा है
देख- देख कर दुनिया सारी
दिमाग बेचारा घबराता है
क्या अच्छा क्या बुरा समझ नहीं पाता है
कभी लगते अपने पराए कभी लगते पराए अपने
इसी अंतर्द्वंद में दिमाग और मन एक दूजे से लड़ जाता है
मन दिमाग को समझा कर धीरे से मुस्काता है
बाँटों खुशियां जग में कोई नहीं पराया है
मन के निर्मल सागर में आनंद ही समाया है
खुशियों का खजाना वहीं कहीं छिपा पड़ा है
बस तुझको ही गोता लगाना है
और उन खुशियों का खजाना पाना है
अपने अंतर्द्वंद से मन को न हराना है ।
*आभा दवे*
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