Tuesday 27 October 2020

कविता-गंतव्य/आभा दवे


 गंतव्य / 

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सारे रास्ते हो गए हैं बंद
कोरोना से कर रहे द्वंद
गंतव्य तक पहुँचना दुश्वार 
सभी कुछ चल रहा है मंद।

अठखेलियाँ कर रही जिंदगी
बस रह गई है अब तो बंदगी
खामोश लब बेचैन है मन सभी
हौले- हौले से समा रही सादगी।

पर्व ,त्यौहार है फीके- फीके
आगे आएँगे फिर कभी मौके
एक - दूजे को सभी समझा रहे
गंतव्य भी सिखा रहा है सलीके ।

आभा दवे
मुंबई 

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