Wednesday 7 October 2020

चीरहरण -कविता/आभा दवे

चीरहरण 
------------
न जाने कब यह सिलसिला 
थमेगा चीरहरण के दौर का 
निर्दोष बालाएँ कब तक मसली 
जाएँगी और इस तरह से दुनिया
से विदा होती ही चली जाएँगी।

प्रश्नचिन्ह लगा रही अब तो
हर नारी की अस्मिता भी
क्यों खामोश समाज देख रहा 
दुर्गति यह सारी नारी की ।

करते हैं नारी की पूजा नारी को ही 
लूट रहे
अपराधी अपराध कर निर्भीक ही घूम रहे
कानून को अब बनानी होगी कठोर धाराएँ
अपराधी अपराध कर निर्दोष न बच पाएँ।

नारी को भी अब मोर्चा संभालना होगा
अपने अधिकारों के लिए लड़ जाना होगा
निर्दोष बालाएँ न हरी जाएँ इस तरह
माँ को ही अब काली बन जाना होगा
घर-घर में संस्कारों का दीप जलाना होगा
समाज में फैले राक्षसों को मिटाना  होगा।

*आभा दवे*
30-9-2020

  


No comments:

Post a Comment