Sunday 3 November 2019

कविता -चाय की चुस्की /आभा दवे

चाय की चुस्की /आभा दवे 
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चाय , काफी बने दोनों मन के मीत
सूरज के निकलते ही दे जीवन को संगीत
ताज़गी और स्फूर्ति मन में भर देते रोज़
निकल पड़ते सभी काम पे गुनगुनाते गीत ।

चाय की चुस्की भी बहुत कमाल दिखाती है
लेखन को  भी हरदम नयी स्फूर्ति दे जाती है
ठंड , गर्मी हो या बरसात की लगा हो झड़ी
गर्म प्याली चाय की होंठों पर मुस्कान ले आती है।

गरीबों की हो झोपड़ी या अमीरों का महल
चाय पीते ही मिल जाता जिंदगी का नया हल
अंग्रेजों की देन ये सभी के जीवन की लत बनी
लोगों के जीवन में  रोज़ ही करती अब पहल ।



आभा दवे

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