Friday, 12 March 2021

हौले -हौले कविता /आभा दवे

हौले- हौले
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हौले - हौले से उसने पुकारा मुझे
अजनबी थी वो पर दुलारा   मुझे।

ममता की छाँव मुझ में डाले हुए
आँखों में नीर भर  निहारा  मुझे।

मिलने आई थी मुझसे अनाथालय में
अपने  दिल में  उसने  उतारा  मुझे ।

मेरे भी कदम उसकी ओर बढ़ चले
माँ  का मिल  रहा था  सहारा मुझे।

मैं आऊँगी लेने तुझे उसने कहा था
अब जग लग रहा  था  प्यारा मुझे ।

वक्त की ये कैसी घनघोर आँधी चली
जिंदगी ने फिर से दोबारा नकारा मुझे।

कोरोना की भेंट अचानक वो चढ़ गई
मिल न  सका ममता का  सहारा मुझे ।

*आभा दवे*

21-11-2020
शनिवार

अद्भुत कविता आभा दवे

 अद्भुत

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नौ रसों में रचा हुआ है यह अद्भुत संसार
सभी रस घूमा किए इस पार से उस पार
हृदयतल के सागर में गोता लगाते हैं
विष और अमृत कलश वहीं पाते हैं अपार।


अजीबोगरीब संसार है ये चकित करने वाला
कोई है दुखी तो कोई फिर रहा होकर मतवाला
अपनी-अपनी दुनिया बसी है सभी के दिलों में
कोई पिरो रहा शब्दों की अनोखी ही माला।


विचारों का आदान-प्रदान करते हैं सभी यहाँ
एक दूसरे के दिलों में समा जाता है जहाँ
मन के भाव कमाल कर जाते हैं गहराइयों तक
अंतर्मन में न जाने यह सब छुपे रहते हैं कहाँ?


आभा दवे
6-3-2021
शनिवार