Tuesday 22 December 2020

पहेली कविता /आभा दवे

पहेली
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पहेली सा जीवन लगता है लेकिन
उसका भी हल निकलता है लेकिन
सभी ही एक दिशा के हैं राहगीर
धर्म  सभी के रास्ते बदलता है लेकिन ।

कोहरा सा धुँधला रहता भविष्य
पहेली सी समाहित है उसमें आयुष्य
जीवन यूँही चलता रहता निरंतर
धरा पर प्रमुख तत्व गुरु और शिष्य।

शून्य काल से चली आ रही कहानी
तम में उजाला है बात पुरानी
रहस्यमय, मौन है अजब एक शक्ति
पहेली बन विचरती लगती रूहानी होती हैरानी।

आभा दवे
मुंबई 

प्रवाह कविता /आभा दवे

प्रवाह/आभा दवे 
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धीरे - धीरे ढल रही
मन में वो पल रही
मौज -मौज उतर रही
प्रवाह बन चल रही ।

जिंदगी  इक प्रवाह है
इतिहास भी  गवाह है
चलना है निरंतर यहाँ
कहता जल - प्रवाह है ।

रुको नहीं डरो नहीं 
प्रवाह बन चले चलो
उम्मीदों  का  चंदन 
शीश पर मले चलो
गिरा जो उठ गया 
उठ कर चल दिया
उनकी अमरता में 
ही  सब ढले  चलो ।

आभा दवे
मुंबई