Wednesday, 30 March 2022

मैं ही मैं हूँ कविता -आभा दवे


 मैं ही मैं हूँ

-------------
तुम को तुम ही से मिलाता हूँ मैं
ऐसा चक्र  चलाता हूँ मैं 
तुम खो न जाओ जग की भूल भुलैया में
दुख का जामा पहनाता हूँ मैं ।

सुख का खिलौना दे तुम्हारा मन 
बहलाता हूँ मैं
निराकार रूप हूँ  पर पंच तत्वों में 
अपने दर्शन कराता हूँ मैं ।

भेजता हूँ  दुनिया में सबको 
और दुनिया से उठाता भी हूँ 
चारों दिशाओं में व्याप्त हूँ मैं
फिर भी अदृश्य कहलाता हूँ मैं ।

रहता हूँ दिलों में और पूजा जाता हूँ
मंदिरों में और निष्ठुर भी कहलाता हूँ मैं
अक्सर अपनों से ही दुख पा जाता हूँ
फिर भी प्यार से सब को सहलाता हूँ मैं।

मेरे अपनों तुझ से नाराज़ नहीं हूँ मैं
तेरे हर क़दम पर सदा ही साथ हूँ मैं
आवाज देकर बुलाना मुझे प्यार से
हरदम हर क्षण सदा तेरे पास हूँ मैं ।

आभा दवे

Friday, 11 March 2022

बसंत ऋतु आई

बसंत ऋतु आई
---------------------

नवपल्लवों का आगमन सूखे पत्तों का टूटना
फूलों का खिलना, पेड़ों पर कोयल का कूकना
दे रहा संदेश बसंत ऋतु आई है धरा पर छाई है
आनंद दे रहा उसका लहलहाती फसलों पर झूमना।

जूही, चंपा ,चमेली ,केतकी ,रातरानी इतराने लगे
तितली और भँवरों को वो अपने पास बुलाने लगे
टेसू के फूल भी बिखेर रहे हैं अपनी अनोखी छटा
आम के पेड़  महकती मंजरियो संग मुस्काने लगे ।

बसंत ऋतु अपने सौंदर्य को चारों ओर है निहारती
कवियों की लेखनी भी उतार रही है उसकी आरती
फाग के गीत - संगीत उत्सव बन चारों ओर है छाए 
प्रकृति प्रसन्न होकर बसंत ऋतु को और भी सँवारती।

-आभा दवे
19-2-2022
शनिवार