Sunday 30 June 2019

कविता -प्यार

सभी को मेरा सादर नमस्कार🙏🙏

     प्यार
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कितना अनोखा होता है प्यार

माँ के आँचल में सोता है प्यार

माँ की थपकी से दुलार पाता

और धीरे -धीरे बड़ा होता है प्यार

कई  रुपों में ढलकर और निखर कर

अंगड़ाई लेता है प्यार

मेहबूब की मेंहदी में रचकर

जीवन में उतरता है प्यार

सुख -दुख की डगर पर गिरता

और उठ कर संभलता है प्यार

कभी दूर तो कभी पास नज़र आता है प्यार

और देखो तो प्यार की महिमा  अंत में

सिर्फ ईश्वर में ही नज़र आता है प्यार

उसकी विराटता का अनुभव कराता है प्यार

जग की मोह -माया छोड़

बस ईश्वर में ही समा जाता है प्यार

माँ के आँचल सा उसमें ही  मुस्कुराता है प्यार  ।

आभा दवे 


*પ્યાર*
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કિતના અનોખા હોતા હૈ પ્યાર
માં કે આચલ મે સોતા હૈ પ્યાર
માં કી થપકી સે દુલાર પાતા
ઔર ધીરે- ધીરે બડા હોતા હૈ પ્યાર
કઈ રૂપો મેં ઢલકર ઔર નિખરકર
અંગઙાઈ લેતા હૈ પ્યાર
મહેબુબ કી મહેંદી મે રચ કર
જીવનને ઉતરતા હે પ્યાર
સુખ -દુખ કી ડગર પર ગિરતા
ઔર ઉઠ કર સંભલતા હૈ પ્યાર
કભી તો તો કભી પાસ નજર આતા 
હૈ પ્યાર
ઔર દેખો તો પ્યાર કી મહિમા અંત મેં
સિર્ફ ઈશ્વર  મેં ભી નજર આતા હૈ પ્યાર
ઉસકી વિરાટતા કા  અનુભવ કરાતા હૈ પ્યાર
જગ કી મોહ-માયા છોડ
બસ ઈશ્વર મેં હી  સમા જાતા પ્યાર
માં  કે આચલ સા ઉસ મેં હી મુસ્કુરાતા હૈ પ્યાર .

आभा दवे  / આભા દવે





निर्माण कविता

 निर्माण
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कर रहा जग उन्नति चारों दिशाओं में
आगे बढ़ रहे हैं कदम चाँद -तारों में
विज्ञान ने कर ली है तरक्की हर पैमाने में
आदमी भी मशीन बन गया अब तो इस जमाने में
वहीं रोबोट भी बदल रहा इंसानों में
अत्याधुनिक साधन  मानव को बना रहे है पंगु
वह दिमाग से नहीं मशीनों से अब गणित कर रहा 
कागज , कलम अब हो रहे सिर्फ नाम के
मोबाइल ,आईपैड पर लिखकर ही नाम कर रहा है
नव निर्माण हो रहा तेजी से, बदल रही है दुनिया
इंसान का इंसानों से प्रेम अब कम हो रहा
जुड़ गए हैं सभी वैज्ञानिक उपकरणों से
रिश्ते भी अब उसी में सिमट कर रह गए
इंसानियत नव निर्माण का देख रही तमाशा
न जाने यह जग किस राह पर निकल पड़ा
निर्माण तो बहुत  तेजी से हो रहा पर
इंसान का क्या चरित्र निर्माण हो रहा
प्रश्नचिन्ह लगा रही है अब  जिंदगी
उसका उत्तर निर्माण के साथ प्रतीक्षा में खड़ा ।

आभा दवे











कविता -हमारे हाथ में क्या है

 हमारे हाथ में क्या है
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गर चाहे तो इंसान

करले मुट्ठी में आसमान

खुद पर रख *भरोसा*

अपनी मेहनत को बना ले ईमान

पत्थर में से निकाल दे पानी

चट्टान को भी बना दे भगवान

अपने बस में है कर्म करना

और बाद में उसके मीठे फल चखना

उसी में छुपा है  कहीं तेरा मान- सम्मान

जिंदगी का स्वाभिमान 

फिर न उठे  कभी ये प्रश्न

हमारे हाथ में क्या है  ....

*आभा दवे*

वृध्द कविता

 वृद्ध
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घर की शान बढ़ाते हैं 

ये वृद्ध ,बूढ़े और बुजुर्ग

हमसाया बन जाते हैं

यह वृद्ध ,बूढ़े और बुजुर्ग

बचपन कभी सवारां था

इन झुर्रियों भरे हाथों ने 

प्रेम से पाला था कभी देकर 

दुलार का प्याला 

अपना सर्वस्व न्यौछावर करके

गमों में भी मुस्कुराते रहे

बच्चों की खातिर अपना जीवन लुटाते रहे

उनकी खुशी में मुस्कुराते रहे

 उनके गमों में आँसू बहाते रहे

वक्त ने छीन लिया अब इनका यौवन

ये बुजुर्ग अब वृद्ध नजर आने लगे

कुछ को मिला घर में सम्मान 

और कुछ वृद्धाश्रम जाने लगे

तकदीर का खेल है निराला

बच्चे इनसे नजर चुराने लगे

ये अपने बुढ़ापे से लाचार

खुद से समझौता कर

जीवन अपना बिताने लगे

बस इन्हें थोड़ा सा मान- सम्मान चाहिए

नाती -पोतों का प्यार चाहिए

अपने जीवन के अनुभवों की झोली

विरासत में दे जाएँ ऐसा अपनो का साथ चाहिए 

कुछ नही इन्हे बस थोड़ा सा प्यार चाहिए ।


*आभा दवे*



अंतर्द्वद

*अंतर्द्वंद*
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देह का अंतर्मन से जुड़ा हुआ है नाता

जो न जाने हम से क्या-क्या है करवाता

रहता है अंतर्द्वंद हमेशा दिल और दिमाग  में

एक चाहे अच्छे कर्म करना

और दूजा बोले तू भी स्वार्थी बनना

यह जग बड़ा ही निराला है

सब जीते  हैं अपनी खुशियों की खातिर

दुख का होता नहीं बंटवारा है

देख- देख कर दुनिया सारी 

दिमाग बेचारा घबराता है 

क्या अच्छा क्या बुरा समझ नहीं पाता है

कभी लगते अपने पराए कभी लगते पराए अपने

इसी अंतर्द्वंद में दिमाग और मन एक दूजे से लड़ जाता है

मन दिमाग को समझा कर धीरे से मुस्काता है

बाँटों खुशियां जग में कोई नहीं पराया है

मन के निर्मल सागर में आनंद ही समाया है

खुशियों का खजाना वहीं कहीं छिपा पड़ा है

बस तुझको ही गोता लगाना है

और उन खुशियों का खजाना पाना है

अपने अंतर्द्वंद से मन को न हराना है ।


*आभा दवे*





कविता -यादों का काँरवा

यादों का कारवाँ
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वक्त के साए में बचपन की यादों का कारवाँ

अब भी चलता है हरदम मेरे साथ

मासूम सा बचपन दिल में कहीं बैठा हुआ है

मेरी उँगलियों को थामे हुए

जो अक्सर नन्हे कदमों की चाप

कानों को सुना जाता है

माँ का आँचल और पिता का प्यार 

उस में नजर आता है

भाई -बहनों के संग लुका -छिपी का खेल

नजरों से नहीं जाता है 

वो पल बहुत याद आता है

जो अब भी मन में करवट ले रहा है

कागज की कश्ती और बरगद की डाल का वो झूला

अब कहाँ  नजर आता है ?

अब तो बस जीवन सिमटा सा नजर आता है

जीवन की शाम दस्तक दे रही है

नए  तोहफे जीवन को दे रही है

पर रुकता नहीं यादों का कारवाँ

बचपन की मीठी सी यादें

अब भी  मुझे लोरी दे रही है 

चंदा मामा की  वो कहानी 

यादों में अब भी सोई पड़ी है ।


आभा दवे 



सायली छंद

सायली छंद* (1-2-3-2-1) *नौ शब्दों वाली कविता*
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चाहत पर 
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1) चाहत

   जो रखते

  आसमान पाने की

   मेहनत करते 

   कठिन ।

2) उपवन

   माली सींचता

   चाहत फूलों की     

    मिलते संग 

    काँटे ।

3) साहित्य

   अनेक विधा 

   लिखते सभी सदा

    चाहत लेखक 

     बनना ।

4) कहानियाँ

    कुछ बोलती

     चाहत संग डोलती

      नाम कमाये

       खूब ।

5) लेखन

    मेहनत मांगे

    अभ्यास होता कठिन 

    चाहत जगाती 

    आशा ।

*आभा दवे*