Wednesday 10 August 2022

रक्षाबंधन-आभा दवे


रक्षाबंधन

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सावन का महीना आते ही चारों ओर रिमझिम फुहारों के साथ त्यौहारों की चहल -पहल शुरुआत हो जाती है। मंदिरों की रौनक बढ़ जाती है। बाजार सज-धज कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने लगते हैं। जगह -जगह सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगी राखियाँ बहनों को लुभाती है। हमारे देश के त्यौहार सांस्कृतिक, धार्मिक सामाजिक , राष्ट्रीय परंपराओं से बंधे हुए हैं। जो लोगों में जोश भर देते हैं। धार्मिक भावनाओं के साथ -साथ राष्ट्रीय भावना का उत्साह भी लोगों में दिखाई देता है। 
सावन महीने में ही रक्षाबंधन का त्यौहार आता है। रक्षाबंधन को श्रावणी और नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं। समुद्र तट पर रहने वाले समुद्र देवता को नारियल अर्पित करते हैं और अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। रक्षाबंधन के दिन सज -धज कर बहने अपने भाइयों को तिलक कर ,आरती उतारती हैं एवं भाइयों के हाथों में राखी बांधती हैं । भाइयों की लंबी उम्र की दुआ करती हैं और अपनी रक्षा का वचन चाहती है। भाई अपनी बहनों को उपहार देकर रक्षाबंधन की रस्म पूरी करता है।


रक्षाबंधन से जुड़ी कई कथाएँ सुनने को मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान वामन ने दैत्यराज 'बली' को बाँधकर पाताल लोक भेजा था। उसी की याद में रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मण यजमानों की सुरक्षा के लिए रक्षा सूत्र बाँधते हुए संस्कृत का मंत्र या श्लोक पढ़ते हैं ,जिसका अर्थ है जिस रक्षा सूत्र से दानवेन्द्र बली राजा बाँधा गया था ,उसी से मैं तुम्हें बाँधता हूँ। यह रक्षा सूत्र अचल हो।


रक्षाबंधन से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है कि इंद्राणी ने देवासुर- संग्राम के समय देवताओं को रक्षा सूत्र बाँधकर उन्हें शक्ति संपन्न किया था। इसीलिए ऐसा माना जाता है कि बहने भाइयों को रक्षा सूत्र बाँधती हैं।


रक्षाबंधन के पर्व का ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है। राखी के इस पवित्र बंधन ने मुगल सम्राट हुमायूँ को अमर कर दिया। जब भी रक्षाबंधन का त्यौहार आता है हुमायूँ को हमेशा याद किया जाता है। कहा जाता है कि मेवाड़ की महारानी कर्णवती देवी ने राखी भेजकर मुगल सम्राट हुमायूँ को भाई बनाया था और उस भाई ने बहन की रक्षा के लिए बहादुरशाह के विरुद्ध युद्ध किया था। ये प्रसंग हमें राखी की महत्त्वता को दर्शाता है। राखी की खातिर धर्म से ऊपर उठकर भाई अपनी बहन की रक्षा करता था ।


धीरे-धीरे राखी का स्वरूप बदलता जा रहा है। अब यह मात्र एक रस्म रह गई है जो बस निभाई जा रही है इसमें वह जज्बा नहीं है जो अपनी बहन की रक्षा कर सकें। आजकल कीमती तोहफे ही रक्षाबंधन के भाई -बहन के प्रेम की परिभाषा हो गई है। लाचार, बेबस औरतें, बच्चियाँ अपने लोगों के ही द्वारा धोखा खा रहे हैं। न जाने वीर भाई अब कहाँ खो गए हैं? बहनों की चीखें अब उन्हें पिघला नहीं पाती। क्या वे सभी पाषाण हृदय हो गए हैं? प्रश्नचिन्ह उठा रही है आज की हर नारी कहाँ हो भाई, तुम कहाँ हो? और बहन कह रही है अपने भाई से गर्व के साथ -

भैया मेरे मैं बाँधूंगी तुमको राखी
तुम देना उपहार मुझे देखेगी सखी
मँहगें उपहार अब नहीं चाहिए हैं मुझे
तुम मुझे बाँध देना एक प्यारी राखी।

भाई की प्रीत तूने सदा है निभाई 
मैं करुँगी तेरी रक्षा बन तेरा भाई
राखी की लाज तो भाई निभाते हैं
पर अब लगता है बहनों की बारी आई।

करनी होगी अपनी रक्षा अब खुद ही
लेना होगी सबको स्वयं अपनी सुध ही 
भाई कहाँ कर पा रहे हैं रक्षा बहनों की
रक्षाबंधन पर्व संग लाए नई सुध-बुध ही ।

आभा दवे
मुंबई 
10-8-2022
बुधवार 












  


 

Wednesday 13 July 2022

गुरू पूर्णिमा पर विशेष-आभा दवे

 गुरू पूर्णिमा पर विशेष 

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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥


संतो ने गुरु को सर्वश्रेष्ठ माना है। गुरु जो भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान देकर जीवन में नया प्रकाश फैलाते हैं। प्राचीन काल में गुरु-  शिष्य परंपरा थी । गुरु की आज्ञा का पालन करना शिष्य का प्रथम कर्तव्य था। शिष्य के लिए गुरु ही सब कुछ होता था । गुरु द्वारा जो मार्ग दिखाया जाता था शिष्य उसी पर चल पड़ता था और अध्यात्म की ऊँचाई को पा जाता था। अब समय के साथ-साथ सब कुछ बदल गया है। गुरु और शिष्य की परंपरा पहले जैसी  नहीं रही। सही गुरु को पहचानना बहुत कठिन हो गया है। अपनी बुद्धि और विवेक के द्वारा ही इस पथ पर आगे बढ़ा जा सकता है। कहते हैं कि अच्छा अध्ययन, भ्रमण और निरीक्षण एवं समय की पहचान जीवन में आगे बढ़ना में सहायक होती है।  जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्र में प्रगति के पथ पर ले जाती है। हमारे ज्ञानचक्षु अच्छे- बुरे का अनुभव करा कर आध्यत्मिकता से स्वत: ही जुड़ जाते हैं और हमें 'अप्प दीपो भव:' का एहसास कराते हैं। भगवान दत्तात्रेय ने सभी से कुछ न कुछ ग्रहण कर उनको अपना गुरु माना है।

भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए थे। वे कहते थे कि जिस किसी से भी जितना सीखने को मिले, हमें अवश्य ही उन्हें सीखने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। उनके 24 गुरुओं में  पृथ्वी, सूर्य, पिंगला, वायु, मृग, समुद्र, पतंगा, हाथी, आकाश, जल, मधुमक्खी, मछली, बालक, कुरर पक्षी, कबूतर, अग्नि, चंद्रमा, कुमारी कन्या, सर्प, तीर (बाण) बनाने वाला, मकडी़, भृंगी, भौंरा (भ्रमर)  और अजगर शामिल हैं। जो हमें कुछ न कुछ सीख दे जाते हैं।

सूर्य- सूर्य अलग-अलग दिखाई देता है, वैसे ही आत्मा भी एक ही है, लेकिन वह कई रूपों में हमें दिखाई देती है।
 
पृथ्वी- पृथ्वी से हम सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। 

पिंगला-  पिंगला नाम की  एक वेश्या थी । भौतिक सुख सुविधाओं का त्याग कर वह आध्यात्मिक राह पर निकल पड़ी। उसे इस बात का ज्ञान हो गया था कि सच्चा सुख ईश्वर की भक्ति में ही है । उसके वैराग्य से भगवान दत्तात्रेय प्रभावित हुए। 

वायु- दत्तात्रेय  जी ने के अनुसार वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है, उसी प्रकार हमें अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी अपनी अच्छाइयों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

मृग- मृग अपनी मौज-मस्ती, उछल-कूद में इतना ज्यादा खो जाता है कि उसे किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे  यह सीख मिलती है हमें ज्यादा लापरवाह नहीं होना चाहिए। अपने आसपास की घटनाओं का भी ध्यान रखना चाहिए।

समुद्र- समुद्र की  लहरें  निरंतर गतिशील रहती हैं। समुद्र की लहरों से सीख मिलती है जीवन के उतार-चढ़ाव में भी हमें भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।

पतंगा- जैसे पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है, उसी प्रकार रंग-रूप के आकर्षण और झूठे मोहजाल में हमें उलझना नहीं चाहिए। 
 
 हाथी-  हाथी हथिनी के प्रति आसक्त हो जाता है, उसे देखकर सीख मिलती है  कि तपस्वी पुरुष और संन्यासी को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए।

आकाश-  आकाश से सीख मिलती  कि हर देश, परिस्थिति और काल में लगाव से दूर रहना चाहिए।

जल- भगवान दत्तात्रेय के अनुसार  जल  हमें पवित्रता सिखाता है । हमें सदैव  जल जैसा पवित्र रहना चाहिए।
 
मधुमक्खी-  मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती हैं पर उस शहद को कोई और निकाल कर ले जाता है जो इस बात की सीख देता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।

मछली- मछली  काँटे में  लगे मांस के टुकड़े को  देख कर खाने के लिए चली जाती है और अपने प्राण गँवा बैठती है । जिससे सीख मिलती है हमें स्वाद को  महत्व न देते हुए स्वास्थ्य की दृष्टि से भोजन ग्रहण करना चाहिए।

कुरर पक्षी- कुरर पक्षी  अपनी चोंच में माँस के टुकड़े 
दबाए रहता है पर जब दूसरा  बलवान पक्षी उस माँस 
उससे छीन लेते हैं, तब मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है।  हमें कुरर पक्षी की तरह ही लोभ का त्याग करना है।

कबूतर- दत्त भगवान ने  देखा कि कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है, तो इससे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा प्रेम, स्नेह दु:ख का कारण बनता है।

बच्चे ,बालक -  छोटे बच्चे चिंता से मुक्त हमेशा प्रसन्न रहते हैं  उन्हें किसी भी बात की चिंता या भय नहीं सताता है। बस वैसे ही छोटे बच्चों की तरह हमें भी हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।

 आग- दत्तात्रेयजी ने आग से सीखा कि जीवन में कैसे भी हालात हो, हमारा उन हालातों में ढल जाना ही उचित है। 
 
 चन्द्रमा- चंद्रमा के घटने या बढ़ने से उसकी चमक और शीतलता  हमेशा एक जैसी रहती है, वैसे  ही आत्मा कभी बदलती नहीं है।

कुमारी कन्या- भगवान दत्तात्रेय ने एक बार एक कुमारी कन्या देखी, जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थीं। 
तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़िया ही निकाल दी। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रहने दी। उसके बाद उस कन्या ने आराम से बिना शोर किए धान कूटा। हमें भी एक चूड़ी की भांति अकेले ही रहना चाहिए और निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। 
 
तीर बनाने वाला- दत्तात्रेय ने एक ऐसा तीर बनाने वाला देखा, जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि 
उसे राजा की सवारी निकल गई  उसका आभास ही नहीं हुआ। अत: हमें अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए।

साँप- भगवान दत्तात्रेय ने साँप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। 
एक ही स्थान पर न रुकते हुए भ्रमण द्वारा  ज्ञान बाँटते रहना चाहिए।
 
मकड़ी-  भगवान दत्तात्रेय ने मकड़ी से सीख ली कि वह  स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल जाती है। ठीक इसी तरह भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।

भृंगी कीड़ा- दत्तात्रेय ने इस कीड़े से सीखा कि अच्छा हो या बुरा  , हम जैसा सोचेंगे अपना मन वैसा ही हो जाता है।

भौंरा- भगवान दत्तात्रेय ने भौंरे से सीखा कि जिस तरह भौंरा फूलों से पराग ले लेता है। उसी प्रकार जहाँ भी सार्थक बात सीखने को मिले, उसे तत्काल ग्रहण कर लेना चाहिए। 

अजगर- भगवान दत्तात्रेय ने अजगर से सीख ली   जीवन में हमें संतोषी बनना चाहिए । जो मिल जाए, उसे खुशी से  स्वीकार करना चाहिए। 

भगवान दत्तात्रेय जी के ये चौबीस गुरु हमें भी ज्ञान का रास्ता दिखाते हैं। जिस प्रकार भक्ति और प्रेम जोर- जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता उसी तरह किसी को भी जोर -जबरदस्ती से गुरु स्वीकार नहीं किया जा सकता। अपने विवेक एवं श्रद्धा और विश्वास के बल पर ही गुरु -शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाया जा सकता है और अपने जीवन पथ को निष्कंटक  बनाया जा सकता है । जहाँ से आध्यात्मिक यात्रा आनंदमय हो और कहा जा सके-

गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागूँ पांय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।

आभा दवे
मुंबई 





 



Tuesday 14 June 2022

संत कबीर जयंती पर विशेष

 संत कबीर जयंती पर

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 संत कबीर जी की आज जयंती है (14 जून) ऐसा माना जाता है कि कबीर जी का जन्म संवत्‌ 1455 की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इसीलिए ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन देश भर में कबीर जयंती मनाई जाती है। कबीरदास जी का लालन -पालन जुलाहा दंपति नीरू और नीमा ने किया। कबीरदास जी की शिक्षा नहीं हो सकी पर उनकी वाणी ने समाज के लोगों में जागरूकता पैदा की एवं अपने दोहों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों का विरोध किया। वे जाति-पाँति, छुआछूत, ढोंग, आडम्बर के विरोधी थे। वे हिन्दू और मुसलमान दोनों की गलत बातों का सदा ही विरोध करते थे। उन्होंने निस्वार्थ प्रेम एवं मानवता के हितों की बात का सदा समर्थन किया और अपनी बात पर सदा अडिग रहे। लोगों का विश्वास था कि काशी में मरने से मुक्ति मिलती है और मगहर में मरने वाला नरक में जाता है। कबीर दास जी इस अंधविश्वास का खंडन करने के लिए अंतिम समय में मगहर चले गए थे। कबीर जी का देहांत वहीं हुआ संवत् 1575 में। कबीर जी की पत्नी का नाम लोई था। उनके पुत्र का नाम कमाल एवं पुत्री का नाम कमाली था। कबीर जी अपने पुत्र कमाल से अप्रसन्न रहते थे इसका उल्लेख उनके इस दोहे से मिलता है-
 
बूडा़ वंश कबीर का, का उपजे पूत कमाल।
हरि का सुमिरन छोड़कर घर से आया माल।।

कबीर दास जी ने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया था। गुरु बनाने का तरीका भी बड़ा ही दिलचस्प है। कबीर दास जी एक दिन प्रातः काल अंधेरे में ही काशी के  'पंचगंगा घाट' की सीढ़ी पर जा लेटे। रामानंद जी प्रतिदिन वहाँ स्नान करने आते थे। अंधेरे में उनका पैर कबीर जी के ऊपर पड़ गया, जिसके कारण सहसा उनके मुख से 'राम- राम 'शब्द निकल गया। कबीर दास जी ने 'राम' शब्द को अपना गुरु मंत्र मान लिया और वे रामानंद जी के शिष्य बन गए। रामानंद जी ने कबीर जी की गुरु भक्ति देखकर उन्हें अपना शिष्य स्वीकार कर लिया।

 कवि कबीर दास पढ़े-लिखे नहीं थे अतः उन्होंने स्वयं कोई पुस्तक नहीं लिखी। उनके शिष्य धर्मदास ने 'बीजक' के नाम से कबीर जी की सब वाणियों  का संग्रह किया। कबीर दास जी ने जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया है ताकि उनकी वाणी जनसाधारण तक पहुँच सके। कबीर जी के दोहे सच्चे हृदय की पुकार हैं। कबीर जी भगवान के अनन्य भक्त थे और उनकी भक्ति उनके दोहों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

कबीर दास जी को नमन करते हुए प्रस्तुत है उनके कुछ दोहे जो आज भी लोगों का मार्गदर्शन करते हैं 🙏🙏

1) तिनका कबहुँ ना निंदिये जो पांव तले होय।
    कबहुँ  उड़  आखों  पड़े  पीर घनेरी होय।।

अर्थ- तिनका को छोटा ना समझो चाहे वह आपके पैर के नीचे ही हो क्योंकि वह उड़ कर आँख में चला गया तो बहुत कष्ट देता है।

2)माला फेरत जुग भया फिरा ना मन का फेर।
   कर का मनका  डार दे मन का मन का फेर।।

अर्थ-कबीरदास जी कहते हैं कि माला फेरते युग बीत गया तब भी मन का कपट दूर नहीं हुआ। मनुष्य हाथ के मनका को छोड़  अपने मन रुपी मनके को फेर अर्थात मन सुधार कर।

3) धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय।
   माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय।।

अर्थ-हे मन धीरे -धीरे सब कुछ हो जाएगा । माली सैकड़ों घड़े पानी पेड़ में देता है पर फल ऋतु आने पर ही लगता है।

4) माया मरी न मन मरा मर मर गया शरीर।
   आशा तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर।।

अर्थ-कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य का मन तथा उसमें बसी माया कभी नहीं मरते न ही उसकी आशा तथा इच्छाएँ मरती हैं  केवल शरीर मरता है इस लिए वह दुख वहन करता है।

5) माटी कहे कुम्हार से तू क्यों रूंदे मोय ।
      एक दिन ऐसा होएगा मैं रोंदूंगी तोय।।

अर्थ-मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे क्यों रौंदता है, एक दिन ऐसा आएगा कि मैं तुझे रौंदूँगी।

6) काल करे सो आज कर आज करे सो अब।
     पल  में  प्रलय होयगी बहुरि करेगा कब।।

अर्थ-जो कल करना है वह आज कर ले और जो आज करना है वह अभी कर, पल भर में अगर कुछ हो गया तो फिर कब करेगा।

7) दुर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय।
     बिना जीव की सांस सों लोह भस्म हो जाए।।

अर्थ-कमजोर को कभी सताना नहीं चाहिए जिसकी हाय बहुत बड़ी होती है जैसे देखा होगा बिना जीव की धोंकनी की साँस से लोहा भी भस्म हो जाता है।

8) ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय।
   औरन को शीतल करे आपा शीतल होय।।
 
अर्थ-मन से घमंड को बिसार कर ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो दूसरों को शीतल करे और मनुष्य खुद भी शांत हो जाए।

9) क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात।
   कहा विष्णु का घट गयो  जो भृगु ने मारी लात।।

अर्थ-छोटे चाहे जितना उत्पात करें परंतु बड़ों को क्षमा रखनी चाहिए । विष्णु का क्या घट गया जो भृगु ने लात मार दी।

10) बाहर क्या दिखलाये अंतर जपिये राम।
     कहा काज  संसार से तुझे धनी से काम।।

अर्थ-तुझे संसार के दिखावे से क्या काम तुझे तो अपने भगवान से काम है इसलिए गुप्त जाप कर।

11) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
       जो दिल खोजा आपना ,मुझसे बुरा ना कोय।।

अर्थ-कबीर जी कहते हैं जब मैं बुरा देखने गया तो मुझे कोई बुरा  नहीं मिला जब मैंने अपने मन को टटोला तब लगा मुझसे बुरा कोई नहीं है।

12) पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
       ढाई आखर प्रेम का,  पढ़े सो पंडित होय।।
  
अर्थ-बड़ी-बड़ी पोथी पढ़ने से कोई पंडित नहीं हो जाता पर प्रेम का ढाई अक्षर का ज्ञान होने से पंडित बन जाता है।

13) जब मैं था तब गुरु नहीं अब गुरु है मैं नाय।
      प्रेम गली अति सांकरी तामें दो न समांय।।

अर्थ- जब मेरे अंदर अहंकार था तब परमात्मा नहीं था अब परमात्मा है तो  अंहकार मिट गया यानि परमात्मा के दर्शन से अंहकार मिट जाता है।

14)जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
    मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।। 

अर्थ-जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ  पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते। 

15) साईं इतना दीजिए, जामें कुटुम समाय।
       मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाए।।

अर्थ-कबीरदास जी कहते हैं परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमें परिवार का गुजारा चल जाए मैं भी भूखा न रहूँ और साधु भी भूखा न जाए।

16)आये हैं सो जायेंगे राजा रंक फकीर।
      एक सिहासन चढ़ि चले एक बंधे जात जंजीर।।

अर्थ-जो आया है वह दुनिया से जरूर जाएगा चाहे राजा हो या कंगाल, फकीर हो ।  एक तो सिहासन पर जाएँगे और एक जंजीरों से बंधा हुआ। अर्थात जो भले काम करने वाले हैं वो सिंहासन पर और जो खोटे काम करेंगे वह जंजीर से बँधकर जाएँगे।

प्रस्तुति/संकलन
आभा दवे
मुंबई
     

Wednesday 1 June 2022

मुहावरों पर आधारित पंक्तियाँ-आभा दवे

 मुहावरों पर आधारित पंक्तियाँ

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रोजमर्रा  की जिंदगी में न जाने कितनी बार जाने- अनजाने ही हम सभी मुहावरों का प्रयोग करते रहते हैं। यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं, जो थोड़े में ही बहुत कुछ कह जाते हैं। मुहावरों का कार्य भाषा को रोचक, सहज और सशक्त बनाना है। मुहावरे भाषा को सौंदर्य प्रदान करते हैं, जटिल भाषा को सहज बनाते हैं। मुहावरे शब्दों के भावों को बड़ी ही सरलता से प्रकट करते हैं। मुहावरों का उसके शब्दार्थ से संबंध कम होता है। जैसे- पापड़ बेलना। मुहावरे में पापड़ से कोई संबंध नहीं है। उसका अर्थ है बहुत परिश्रम करना। इसलिए जब बहुत परिश्रम करना का भाव प्रकट करना हो, तब इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है। अक्सर कथा, कहानियों, व्यंग्य, लेखों में मुहावरों का प्रयोग देखने को मिलता है। मैंने कुछ मुहावरों को काव्य रूप में ढालने की कोशिश की है प्रस्तुत है कुछ पंक्तियाँ-

1) दाँतो तले अंगुली  वो दबाते रहे
    क्रिकेट मैच देख ताली बजाते रहे।

2) नौ दो ग्यारह हुए नोटों की थैली लिए
    चोर  पुलिस  को  यूँही  सताते  रहे।

3) जान  पर खेलकर युद्ध में शामिल हुए
    देश की खातिर सैनिक जान लुटाते रहे।

4) फूले  न  समाते  माता  - पिता
    बच्चे  सफलता  जब  पाते रहे ।

5) अपने  मुँह  मियाँ  मिट्ठू बनते सभी
     औरों  को  उंगलियाँ  दिखाते रहे ।

6) मुँह में पानी भरे वो निहारा  किए
     अमीरों  की  थाली  सजाते  रहे ।

7) कसौटी पर कसना सबको आता नहीं
    अपनों से ही अक्सर चोट  खाते  रहे ।

8) पानी का बुलबुला है जग सारा
    एक दूसरे को सब समझाते रहे।

9) चैन की साँस लेना जरूरी यहाँ
     सब  धर्म  यही  समझाते  रहे।

10) उठ जाना है जग से सभी को कभी
       अपने  ही  मन  को  बहलाते  रहे ।

11) दिल में समा जाना कहते प्रभु
     आईना जिंदगी का दिखाते रहे।

कुछ और पंक्तियाँ मुहावरों पर आधारित
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1)पेड़ों पर पक्षियों का चहक उठना
मन का उनको  देख बहक उठना
सूरज की लालिमा सुबह देख के
फूलों का उपवन  में महक उठना।

2) पिया गए परदेस हमारे
   सपने संग ले गए प्यारे
   जी न लगे अब  घर में
   वही तो थे एक मेरे सहारे ।

3)मन रमा  कृष्ण  की  बाँसुरी में
   राधा जल नहीं ला पाई गगरी में
  बेसुध रही  कृष्ण  की  प्रीत संग
  डोलती  रही  उसकी नगरी  में ।

4)अब तो मात खा गए जिंदगी से
   दिन गुजर रहे हैं यूँही सादगी से
   कोई  शिकवा  शिकायत  नहीं
   राज़ी  हुए  हैं  उसकी बंदगी से ।

आभा दवे
मुंबई


Saturday 7 May 2022

माँ - प्रथम गुरु माँ

 प्रथम गुरु माँ /आभा दवे

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प्रथम गुरु तू इस जग की

मान बढ़े सम्मान बढ़े सदा

धरती सा धैर्य लेकर

सहती तू सारी यातना

माँ तेरा उपकार कितना

शब्दों से ना होगा बयां

तू ईश्वर की अद्भुत लीला

देवता भी तेरी कोख से लेते जन्म

और करते सदा तेरी वंदना

ग्रंथों में भी मिलता तेरा गुणगान

तू अपनी संतान के लिए लुटाती जान

कौन तुझसे है बड़ा जग में

तेरे ही आँचल तले दुनिया बसे

कृष्ण करते तुझसे लीला

तेरा कितना सौभाग्य है

प्रभु को भी डाँट देती

फिर प्यार से पुचकार लेती

और हृदय से लगा कर

जीत लेती जग सारा

माँ तुझे शत् - शत् नमन हमारा 


(आभा दवे)


माँ की असीम ममता को शब्दों में बयां करना बहुत ही कठिन है। माँ शब्द ही अपने आप में परिपूर्ण हैजिसके गगन तले सारी दुनिया समाई  है। माँ पर जितना भी लिखा जाए उतना कम ही होगा। भारतीयसाहित्यकारों ने माँ पर एक से बढ़कर एक रचनाएं लिखी हैं एवं माँ के प्रेम को संसार में सबसे ऊँचा स्थानप्रदान किया है। हमारी हिंदी फिल्मों में भी माँ पर एक से बढ़कर एक गीत लिखे गए हैं जो दर्शकों के दिलोंको छू जाते हैं। मातृ दिवस की सभी को शुभकामनाएं देते हुए प्रस्तुत है कुछ फिल्मी गीत जो आज भी दिलोंको छू जाते हैं और माँ की ममता का सुखद एहसास कराते हैं-🙏🙏

1)उसको नहीं देखा हमने कभी

पर इसकी ज़रूरत क्या होगी  माँ

 माँ तेरी सूरत से अलग

भगवान की सूरत क्या होगी

उसको नहीं देखा हमने कभी


इंसान तो क्या देवता भी

आँचल में पले तेरे

है स्वर्ग इसी दुनिया में

कदमों के तले तेरे

ममता ही लुटाये जिसके नयन

ममता ही लुटाये जिसके नयन

ऐसी कोई मूरत क्या होगी

 माँ

भगवान की सूरत क्या होगी

उसको नहीं देखा हमने कभी


क्यों धूप जलाएं दुःखो की

क्यों ग़म की घटा बरसे

ये हाथ दुआओं वाले

रहते है सदा सर पे

तू है तो अंधेरे पथ में हमे

सूरज की ज़रूरत क्या होगी

 माँ

भगवान की सूरत क्या होगी

उसको नहीं देखा हमने कभी

कहते है तेरी शान में जो

कोई ऊँचे बोल नहीं

भगवान के पास भी माता

तेरे प्यार का मोल नहीं

हम तो यही जाने तुझसे बड़ी

हम तो यही जाने तुझसे बड़ी

संसार की दौलत क्या होगी

 माँ

भगवान की सूरत क्या होगी

उसको नहीं देखा हमने कभी

पर इसकी ज़रूरत क्या होगी  माँ

 माँ तेरी सूरत से अलग

भगवान की सूरत क्या होगी

उसको नहीं देखा हमने कभी....

फिल्म - दादी माँ (1966)

गीतकार-मजरूह सुल्तानपुरी


2)तू कितनी अच्छी हैतू कितनी भोली हैप्यारी प्यारी है,

 माँ माँ माँ माँ 

यह जो दुनिया हैवन है कांटो कातू फुलवारी है,

 माँ माँ माँ माँ 

दुखन लागी हैं माँ तेरी अँखियाँ,

मेरे लिए जागी है तू सारी सारी रतिया 

मेरी निदिया पे अपनी निदिया भी तूने वारी है,

 माँ माँ माँ माँ 

तू कितनी अच्छी हैतू कितनी भोली हैप्यारी प्यारी है....

अपना नहीं तुझे सुख दुःख कोई,

मैं मुस्काया तू मुस्काई मैं रोया तू रोई 

मेरे हसने पे मेरे रोने पे तू बलिहारी है,

 माँ माँ माँ माँ 

तू कितनी अच्छी हैतू कितनी भोली हैप्यारी प्यारी है....

माँ बच्चो की जा होती है,

वो होते हैं किस्मत वालेजिनकी माँ होती है 

कितनी सुन्दर हैकितनी शीतल हैन्यारी नयारी है,

 माँ माँ माँ माँ 

तू कितनी अच्छी हैतू कितनी भोली हैप्यारी प्यारी है....

फिल्म - राजा और रंक (1978)

गीतकार - आनंद बक्षीगायिकालता मंगेशकरसंगीतकार - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल


3)हो कौन सी है वो चीज जो

यहाँ नहीं मिलती

कौन सी है वो चीज जो

यहाँ नहीं मिलती

सब कुछ मिल जाता है

लेकिन हाँ माँ नहीं मिलती

कौन सी है वो चीज जो

यहाँ नहीं मिलती

सब कुछ मिल जाता है

लेकिन हाँ माँ नहीं मिलती

माँ नहीं मिलती

याद किसी को हो

तो ऐसी बात सुनाई

जिसमे कही  कही

माँ का नाम  आये

दुनिया में कोई ऐसी

दस्ता नहीं मिलती

सब कुछ मिल जाता है

लेकिन हाँ माँ नहीं मिलती

कौन सी है वो चीज जो

यहाँ नहीं मिलती

सब कुछ मिल जाता है

लेकिन हाँ माँ नहीं मिलती

है माँ नहीं मिलती

जिनकी माँ होती है

खुश किस्मत होते है

जिनकी माँ नहीं होती

जीवन भर रोती है

जिनकी माँ होती है

खुश किस्मत होते है

जिनकी माँ नहीं होती

जीवन भर रोती है

जिस्म उन्हें मिलते है

लेकिन जा नहीं मिलती

सब कुछ मिल जाता है

लेकिन हाँ माँ नहीं मिलती

है माँ नहीं मिलती

मंदिर पे भी  मन

कुछ रही नहीं रुकते

ईश्वर के आगे भी

कितने सर नहीं झुकते

माँ को जो  माने वो ज़ुबा नहीं मिलती

सब कुछ मिल जाता है

लेकिन हाँ माँ नहीं मिलती

है माँ नहीं मिलती

कौन सी है वो चीज जो

यहाँ नहीं मिलती

सब कुछ मिल जाता है

लेकिन हाँ माँ नहीं मिलती

है माँ नहीं मिलती।


फिल्मजैसे को तैसा (1973) 

गीतकार-आनंद बक्षी


4)माँ मुझे अपने आँचल में छिपा लेगले से लगा ले कि और मेरा कोई नहीं फिर  सताऊँगा कभी पास बुलाले गले से लगा ले कि और मेरा कोई नहीं माँ मुझे अपने ...

भूल मेरी छोटी सी भूल जाओ माता ऐसे कोई अपनों से रूठ नहीं जाता रूठ गया हूँ मैं तू मुझको मना ले गले सेलगा ले कि और मेरा कोई नहीं 

माँ मुझे अपने ...गोद में तेरी आज तक मैं पला हूँ 

उँगली पकड़ के तेरी माँ मैं चला हूँ 

तेरे बिना मुझको अब कौन सम्भाले गले से लगा ले कि और मेरा कोई नहीं 

माँ मुझे अपने ...

फिल्मछोटा भाई

गीतकार-आनंद बक्षी


5)माँ ही गंगा माँ ही जमुना

माँ ही तीरथ धाम

माँ ही गंगा माँ ही जमुना

माँ ही तीरथ धाम

माँ का सर पर हाथ जो तेरे

क्या ईश्वर का काम

बोलो क्या ईश्वर का काम

जय जय मैया तुझे प्रणाम

माँ माँ..

सूरज चंदा आँखे माँ की

मस्तक है आकाश

सारी धरती गोद है उसकी

साँसे फूल सुहास

सागर सा आँचल लहराए

सागर सा आँचल लहराए

कुन्तल से घनश्याम

काले कुन्तल से घनश्याम

जय जय मैया तुझे प्रणाम

माँ माँ.....


फिल्म-मंझली दीदी

गीतकार-गोपालदास 'नीरज'


संकलन/प्रस्तुति

आभा दवे