Friday 23 August 2019

लाड़ला जन्माष्टमी पर /आभा दवे

लाडला /आभा दवे 
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मैं लाडला यशोदा का
माखनचोर मतवाला
माखन मिश्री खाकर
जीत लेता जग सारा ।

सिर पर मोर मुकुट
कमर में सोहे बांसुरी
गहनों का श्रृंगार किए
छवि लगे मेरी न्यारी ।

हरे रंग में सुनहरी किनारी
सबके मन की दुलारी
मेरे चंचल चितवन पर
देखो गोपियाँ  बलिहारी ।

*आभा दवे*

23-8-2019 शुक्रवार 

जन्माष्टमी पर 
चित्र पर आधारित कविता 



Wednesday 21 August 2019

कविता जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में -कृपा /आभा दवे

*कृपा*
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कृष्ण अपनी बाँसुरी फिर से बजा
बाँसुरी की धुन पर सबको नचा
तू तो है जग का लाडला
अपनी मधुर मुस्कान फिर से दिखा ।

दीनों पर तू करता *दया* 
उन पर अपनी *कृपा* बरसा
तरस रहे सब तेरे दरस को
पहली सी आकर छवि दिखा ।

बाल गोपाल का रूप हो या सुदर्शन धारी
तेरी महिमा बड़ी ही निराली ,लगती प्यारी
ज्ञान की राह फिर से दिखा 
नेक राह पर सबको चला ।

जय गोविंद जय गोपाल
राधा का श्याम मीरा की शक्ति
प्रेम सुधा को तरसी धरती
नेह प्यार का तू बरसा ।

*आभा दवे*

Tuesday 20 August 2019

लघुकथा -बदहाली /आभा दवे

लघुकथा
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*बदहाली*/ आभा दवे 
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नीलू को जैसे ही चार बजे शाम को एक अनजान फोन आया वैसे ही वह ऑफिस का सारा काम छोड़कर घर की ओर भागी । उसने ऑफिस में किसी से कुछ नहीं कहा । सभी की नजरें भागती हुई नीलू पर गई । रीना ने भागती हुई नीलू से पूछा -"कहाँ भागी जा रही हो ऐसे ?" नीलू ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया "घर" ..

नीलू जैसे ही घर पहुँची वह अवाक रह गई उसका बेटा जो कुछ दिन पहले ही अमेरिका से घर आया था वह अपने दोस्तों के साथ बैठकर  शराब पी रहा था और उन दोस्तों के साथ लड़कियाँ भी शराब पीकर  सिगरेट का धुआँ उड़ा रही थी। सभी *बदहाली* की अवस्था में थे ।

नीलू को पहले तो कुछ समझ नहीं आया । फिर उसने सभी से अपनी वाणी को नियंत्रित करते हुए कहा-"अब तुम लोग अपने -अपने घर जा सकते हो । शायद मैं ही गलत थी मैंने अपने बेटे पर इतना भरोसा किया।" गला रुँध जाने पर वह और कुछ न कह पाई आँखों से अश्रु धारा निकल पड़ी।

*आभा दवे*

Monday 19 August 2019

गणपति वंदन /आभा दवे

*गणपति वंदन* /आभा दवे
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हे गणपति ,गजानन
जय गणेश ,जय गणेश
होती है प्रथम ,तेरी ही पूजा
तुझसा कहाँ कोई देव और दूजा 
तेरे दर्शन को प्यासे नयन
हे गणपति, गजानन ।

तुझको ही पूजे यह जग सारा
प्रथमेश तुम हो बड़ा नाम तिहारा
शिवशंकर सुत गौरी नंदन
करते सब तेरा ही वंदन
 हे गणपति गजानन ।

नाम तुम्हारा अनंत भगवन
मात -पिता के चरणो में पाते जीवन
रिद्धि -सिद्धि के तुम हो स्वामी
बुद्धि के देवता, तुम हो अंतर्यामी
करते देवता भी तेरा वंदन
हे गणपति ,गजानन ।

सभी पाते तुझसे वरदान प्रभु
तेरा कितना अद्भुत है रूप
लड्डूअन का भोग लगे तुझको
फूलों से सजे तेरा रूप पावन
हे गणपति ,गजानन ।

मूषक है तेरा वाहन
देता संदेश सभी को
छोटा -बड़ा कुछ भी नहीं
कर्मो से सजता ये जीवन
हे गणपति ,गजानन
शत्-शत् वंदन ,शत-शत वंदन ।



*आभा दवे*©

20-8-2019 मंगलवार 

Sunday 18 August 2019

वर्ण पिरामिड -सुभाष चंद्र बोस जी की पुण्यतिथि पर /आभा दवे

वर्ण पिरामिड* /आभा दवे 

1) ये
   जय 
   हिंद का 
   नारा लगा 
   सुभाष चंद्र 
   ने जगाया जोश 
   राष्ट्र नतमस्तक ।

2) थे 
    नेता 
    सफल
    फ़ौज बना 
    आजाद हिंद 
    संभाली कमान
    देशभक्ति जगाई ।

3) वे 
    जेल 
    गए थे 
    बंदी बने
    देश खातिर 
    घुटने न टेके 
   अंग्रेजों के सम्मुख ।

4) ये ,
    तुम 
    मुझे दो 
    खून , तुम्हें
    आजादी दूँगा 
     मैं, का यह नारा 
    जग प्रसिद्ध हुआ ।

5) न
   जाने 
   खो गए 
   अचानक 
   कहाँ गए वे 
   एक पहेली सी
   बनी हुई सदा से ।

*आभा दवे*
18-8-2019 रविवार 

Friday 16 August 2019

सायली छंद /आभा दवे

सायली छंद (1-2-3-2-1 ) नौ शब्दों वाली छोटी कविता 

सायली छंद  /आभा दवे 
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1) आजादी
    वतन की
    कठिनाइयों से मिली
    नमन हमारा
     शहीदों ।

2) स्वतंत्रता
    बनी रहे
    हरेक व्यक्ति की
    आगे बढ़े
     सभी ।

3) जलती
    रहे मशाल
   आजादी के नाम
    बनी रहे
    मोहब्बत ।

4) आजादी
     एक एहसास
     महसूस होता खास
     होता रहे
     आभास ।

5) विचार
   मन से बंधे
   आजादी  न मिले
   बैचैन मन
    सदा ।
    


*आभा दवे*

वर्ण पिरामिड /आभा दवे

वर्ण पिरामिड* - *स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंधन पर* /आभा दवे 

1) जो
   आज 
   आजादी 
   मना रहे 
   भारतवासी 
   नमन शहीदों 
   याद तेरी कुर्बानी ।

2) ये
    रंग 
   तिरंगा 
   अमर है 
   देश की शान 
   सैनिकों का मान 
  सभी को अभिमान ।

3) है 
   रक्षा
  बंधन 
  प्यारा पर्व 
  भाई- बहन 
  संग खुशहाली 
  प्रीत यह निराली ।

4) वो
   धागा 
   कच्चा सा 
   रेशम का 
   बंधन पक्का 
   जीवन भर का 
   भाई -बहन स्नेह ।

     आभा दवे


15-8-2019 गुरूवार 

सायली छंद /आभा दवे

सायली छंद (1-2-3-2-1 ) नौ शब्दों वाली छोटी कविता 

*पुकार*
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1) जिंदगी
    पुकार कर
    कह रही है
    आगे बढ़ो 
     हमेशा ।

2)मन
   की पुकार
   देती है दिलासा
    खुश रहो
     सदा ।

3) पुकार
    कर देखो
    ईश्वर को सदा
     पास खड़ा
      हमेशा ।

*आभा दवे*
   

कविता -आशा /आभा दवे


*आशा*
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मन में उमंग जगाए 
सपने नए दिखाए
दूर खड़ी निहारें सबको
वही आशा कहलाए ।

काँटे पथ पर लाख हो
उम्मीद न बुझने पाए 
दीप की लौ  जैसे जले 
वह भी आस दिखाए ।

भटके न राह पथिक
कदम -कदम पर जोश
हौसला बढ़ाती जाए
अटल विश्वास जगाए

आशा की किरण सबके
मन को छू कर उत्साह जगाए ।

*आभा दवे*



Tuesday 13 August 2019

लघुकथा -रक्षाबंधन

लघुकथा /आभा दवे 
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रक्षाबंधन
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मधु ने सुबह उठते ही रितु से कहा -"जरा अपना हाथ तो दिखाना मेहंदी कैसी रची है?" रितु ने फौरन अपना हाथ मधु को  दिखाते हुए कहा- "देखो दीदी, मेरी मेहंदी कितनी अच्छी रची है ।" मधु ने रितु के हाथों को चूम लिया । चौदह वर्षीय रितु अपने से तीन वर्ष बड़ी मधु के गले प्यार से लग गई । माँ के आते ही मधु और रितु दोनों ने एक साथ कहा- "हाँ , हम लोगों को पता है कि आज रक्षाबंधन है और हमें बस थोड़ी देर में तैयार होना है , तीनों साथ में खिलखिला कर हँस पड़ी ।
 
थाली को  राखी कुमकुम ,अक्षत, दीया सभी से सुसज्जित किया गया ।  सभी ने एक दूसरे को रक्षाबंधन की बधाई दी । रितु और मधु ने माँ और पिताजी के हाथ में राखी बाँधी , मिठाई खिलाकर उनका आशीर्वाद लिया । मधु और रितु ने एक दूसरे को राखी बाँधी , उपहार दिए और खुश होकर एक दूसरे को  रक्षा का वचन दिया । 

रितु और मधु के पिताजी ने अपनी बेटियों को गले से लगाते हुए कहा -"रक्षाबंधन का महत्व तुम दोनों  ने बखूबी सिखा दिया ।" रितु- मधु की माँ की आँखों से खुशी के आँसू निकल पड़े ।



*आभा दवे*

सायली छंद -आज़ादी ,स्वतंत्रता पर

सायली छंद (1-2-3-2-1 ) नौ शब्दों वाली छोटी कविता 

सायली छंद  /आभा दवे 
------------
1) आजादी
    वतन की
    कठिनाइयों से मिली
    नमन हमारा
     शहीदों ।

2) स्वतंत्रता
    बनी रहे
    हरेक व्यक्ति की
    आगे बढ़े
     सभी ।

3) जलती
    रहे मशाल
   आजादी के नाम
    बनी रहे
    मोहब्बत ।

   आभा दवे

Friday 9 August 2019

कविता - परीक्षा पर /आभा दवे

परीक्षा  /आभा दवे 
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करवट बदलती रहती है हमेशा जिंदगी
काँटों और फूलों के संग झूलती जिंदगी
खट्टे -मीठे अनुभव में बँधी हुई थिरकती
परीक्ष लेती  दरिया सी बहती जिंदगी ।

आज -कल का नहीं है ये सफर जिंदगी का
सदियों से चला आ रहा दौर मुश्किलों का
हार -जीत के पलड़े होते रहते ऊँचे-नीचे
परीक्षा की सुई दौड़ती वक्त के आगे-पीछे ।

सफलता -विफलता कहती सभी के 
जीवन की अनोखी , अद्भुत कहानी 
लगा पार वही जिसने सीखी जिंदगानी
विजयी मुस्कान लिए परीक्षा में सफल हुए।

आभा दवे



Thursday 8 August 2019

वर्ण पिरामिड -आभा दवे

वर्ण पिरामिड /आभा दवे
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1)माँ
   तेरे 
   जाने से 
   दुनिया ही 
   बदल गई 
   यादों में बसते
   बचपन के दिन ।

2) क्यों 
    प्यारे 
    लगते 
    इतने वो 
    सपने सब
    बचपन वाले
    माँ -पिता सब संग ।

आभा दवे

Wednesday 7 August 2019

कविता -शिल्पकार /आभा दवे

शिल्पकार /आभा दवे 
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ऊपर बैठा शिल्पकार गढ़ रहा
ना जाने कितनी मूर्तियाँ
अलग -अलग रंग -बिरंगी
कलाकृति है अनोखी ।

अलग-अलग हिस्सों में
बाँट दी है अपनी मूर्तियाँ
कोई हँसती कोई रोती सी
कोई जीने को लाचार सी ।

वो शिल्पकार बहुत न्यारा है
सभी को जीवन में प्यारा है
दुहाई देते हैं सभी उसकी
सभी के साँसों की डोर उसके 
ही पास है 
इस लिए वो सभी का दुलारा है।

आभा दवे




Monday 5 August 2019

वर्ण पिरामिड -नागपंचमी पर /आभा दवे

वर्ण पिरामिड /आभा दवे
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  1) है 
    तिथि
    पंचमी
    होती पूजा
    विषधर की
    सावन मास में
    पूजे जाते हैं सभी ।

2)वो 
   सर्प
   फुँकारे
   फन फैला
   रक्षा के लिए
   पूजे जाते घर
   नागपंचमी पर ।

आभा दवे

Saturday 3 August 2019

कविता -दोस्ती

दोस्ती  /आभा दवे
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दोस्ती का सफर यूँही ही चलता रहे

हिंदी की डगर पर बढ़ता रहे

देकर एक दूसरे को मार्गदर्शन

हिंदी का पौधा पलता रहे

लेखनी से सभी का रिश्ता पक्का है

शब्दों का सफर चलता रहे

हिल -मिल कर ही कदम बढ़ाना है

हिंदी को विश्व तक सम्मान दिलाना है

जब एकजुट मिल कर हिंदी में 
करेंगे अद्भुत सृजन

मान और सम्मान बढ़ाएँगें देश का

तिरंगे झंडे में हिंदी
मुस्कुराएगी

हम दोस्तों की मेहनत

एक दिन रंग लाएगी।


सभी को मैत्री  दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ🙏💐💐💐💐


*आभा दवे*

गीतकार गुलज़ार जी की रचना

किताबें - गुलज़ार जी  की रचना  आज की हक़ीक़त 
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किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से,
बड़ी हसरत से तकती हैं.
महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं,
जो शामें इन की सोहबत में कटा करती थीं.
अब अक्सर .......
गुज़र जाती हैं 'कम्प्यूटर' के पदों पर.
बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें ....
इन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
बड़ी हसरत से तकती हैं,
जो क़दरें वो सुनाती थीं,
कि जिनके 'सेल' कभी मरते नहीं थे,
वो क़दरें अब नज़र आतीं नहीं घर में,
जो रिश्ते वो सुनाती थीं.
वह सारे उधड़े-उधड़े हैं,
कोई सफ़ा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है,
कई लफ़्ज़ों के मानी गिर पड़े हैं.
बिना पत्तों के सूखे ठूँठ लगते हैं वो सब अल्फ़ाज़,
जिन पर अब कोई मानी नहीं उगते,
बहुत-सी इस्तलाहें हैं,
जो मिट्टी के सकोरों की तरह बिखरी पड़ी हैं,
गिलासों ने उन्हें मतरूक कर डाला.
ज़ुबान पर ज़ायका आता था जो सफ्हे पलटने का,
अब ऊँगली 'क्लिक' करने से बस इक,
झपकी गुज़रती है,
बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता है परदे पर,
किताबों से जो ज़ाती राब्ता था, कट गया है.
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे,
कभी गोदी में लेते थे,
कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बना कर.
नीम-सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से,
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइन्दा भी.
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल,
और महके हुए रुक्क़े,
किताबें माँगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे,
उनका क्या होगा ?
वो शायद अब नहीं होंगे !

Friday 2 August 2019

कविता -किरदार /आभा दवे


दुआओं में मुझे याद रखना
 मेरे किरदार के साथ
 लफ़्ज़ों में मुझे याद रखना
 मेरी कविताओं के साथ🙏

किरदार/ आभा दवे 
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ये लेखनी भी खूब कमाल करती है
न जाने कितने किरदार गढ़ती है
किसी को बैठा देती है सातवें आसमान पर
किसी को भिखारी का पात्र थमा देती है
जैसे विधाता ने अपने अलग -अलग किरदार
गढ़ लिए और सभी को अलग अलग हिस्सों में
बाँट दिया कुछ समय के लिए इस जहाँ में
चाहे-अनचाहे किरदार निभा रहे सभी
मजबूरी, लाचारी, बेबसी के इर्द-गिर्द
कभी सुख कभी दुख की नैया पार लगाते
जिए जा रहे हैं सभी एक नयी आस में ।

आभा दवे




कविता -सावन की ख़ुशियाँ /आभा दवे

  सावन की खुशियाँ /आभा दवे 
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सावन के आते ही
छा जाती है खुशियाँ
सखियों संग झूला झूलती
शहर,गाँवों की गोरियाँ ।

मेहंदी रचाती हाथों में
रंग बिरंगी ओढ़े चुनरिया
गालों की लाली बतलाती
उनके चेहरों की बोलियाँ ।

आँखों में सपने सजते साजन के
माथे पर होता बिंदी का श्रृंगार
हाथों की चूड़ियाँ पैरों की पायल
पुकारती पिया मिलन की आस।

सावन के बादल प्रीत जगाते
धरती पर हरियाली लाते
फूलों से सजती  धरती
झूलों पर गीतों की मस्ती ।

पुरवाई चलती मंद- मंद
लिए साथ बौछारों का संग
तीज -त्यौहार रंग जमाते
आँगन में खुशियाँ भर लाते ।

आभा दवे



Thursday 1 August 2019

सायली छंद /आभा दवे

सायली छंद /आभा दवे 


1)मेहंदी 
रंग लाती 
पीसने के बाद 
छोड़ती निशाँ
 हाथ ।

2) त्यौहार
   कोई भी 
   हाथ रच जाता 
    मेहंदी संग 
    मुस्कुराता ।

3) दुल्हन 
   बिन मेहंदी 
   न बैठती डोली 
   रंगी साजन
     रंग ।

4) श्रृंगार
   मेंहदी से
   छुपा है प्यार
   पिया का 
   अपार ।

5) मेहंदी 
    रच गई 
    नीर भरे नयन 
    पुकारते सदा 
    पिया ।

6) त्याग
    सिखाती मेहंदी
    तप कर ही
    सोना होता
     खरा ।

7) मेहंदी 
    गजब है 
   होती हरी है
    रंग  छोड़े 
    लाल ।

आभा दवे