Wednesday 7 August 2019

कविता -शिल्पकार /आभा दवे

शिल्पकार /आभा दवे 
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ऊपर बैठा शिल्पकार गढ़ रहा
ना जाने कितनी मूर्तियाँ
अलग -अलग रंग -बिरंगी
कलाकृति है अनोखी ।

अलग-अलग हिस्सों में
बाँट दी है अपनी मूर्तियाँ
कोई हँसती कोई रोती सी
कोई जीने को लाचार सी ।

वो शिल्पकार बहुत न्यारा है
सभी को जीवन में प्यारा है
दुहाई देते हैं सभी उसकी
सभी के साँसों की डोर उसके 
ही पास है 
इस लिए वो सभी का दुलारा है।

आभा दवे




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