प्रवाह/आभा दवे
---------
धीरे - धीरे ढल रही
मन में वो पल रही
मौज -मौज उतर रही
प्रवाह बन चल रही ।
जिंदगी इक प्रवाह है
इतिहास भी गवाह है
चलना है निरंतर यहाँ
कहता जल - प्रवाह है ।
रुको नहीं डरो नहीं
प्रवाह बन चले चलो
उम्मीदों का चंदन
शीश पर मले चलो
गिरा जो उठ गया
उठ कर चल दिया
उनकी अमरता में
ही सब ढले चलो ।
आभा दवे
No comments:
Post a Comment