Saturday 18 November 2017

मृगतृष्णा कविता

मृगतृष्णा
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मृगतृष्णा सी आस लिए

बढ़ते कदम है तेज रफ्तार लिए

पा जायें वो मंजिल शायद

जो सपने में बैठी है प्यास लिए ।

मन चंचल रहता हरदम

बैठा है नया फिर ख्वाब लिए

ना जाने दुनिया दारी

ना जाने रीत पुरानी ।

आगे बढ़ना ठाना है

चट्टानों से भी टकराना है

ये सच भी जाना है

मिट्टी में भी मिल जाना है

पर मृगतृष्णा सी आस लिए


बढ़ते कदम तेज रफ्तार लिए ।

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