Monday 6 November 2017

याद 
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मधुर मुस्कान लिए अधरो पर 

धीरे से वह आती है

कंधे पर थपकी दे कर 

कहीं दूर छिप जाती है

ढूंढा करती हूं जब उसको 

बच्चों सी मचल जाती है

लुका छिपी का खेल खेलती 

मुझको अपने पास बुलाती है

पूछा करती है मुझ से 

याद मेरी कभी आती है

बूझो तो जानें कौन हूं 

जो सबके मन को भाती है

हां  मैं ही  हूं याद 

जो बचपन से ले कर

बुढ़ापे तक साथ चलती हैं 

ये ही जीवन की पूंजी 

जो कभी ना बदलती है ।


आभा दवे

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