Monday 6 November 2017

माटी कविता

माटी
——

बारिश की बूँदे पड़ते ही

झूम उठी धरती सारी

महक उठी माटी की ख़ुशबू

बिखर गयी सुवास निराली ।

     माटी तन है ,माटी मन है

    जैसे चाहो ढालो इसको

    निखर निखर कर

    बिखर बिखर कर

   सब के मन को भाती है

   लुभा लुभा कर थक कर जब

   चूर चूर हो जाती है तो

   अलविदा कह सभी को

    माटी ,माटी में मिल जाती है ।


                                    आभा दवे 

1 comment: