मन की उड़ान
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ज़िंदगी की चादर रोज़ छोटी हो रही है
और ख़्वाहिशें नित्य ज़ोर पकड़ रही है
ना देखे थे सपनों कभी वो अब
आँखों में बसने लगे है
मचल मचल कर
हक़ीक़त में उतरने लगे है ।
कहॉं बस चलता है
मन की उड़ान पर
उड़ उड़ कर मन आज
ले आया आसमान पर ।
आसमान से आसमान को पाना है
और अन्त में अनन्त से मिल जाना है ।
आभा दवे
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ज़िंदगी की चादर रोज़ छोटी हो रही है
और ख़्वाहिशें नित्य ज़ोर पकड़ रही है
ना देखे थे सपनों कभी वो अब
आँखों में बसने लगे है
मचल मचल कर
हक़ीक़त में उतरने लगे है ।
कहॉं बस चलता है
मन की उड़ान पर
उड़ उड़ कर मन आज
ले आया आसमान पर ।
आसमान से आसमान को पाना है
और अन्त में अनन्त से मिल जाना है ।
आभा दवे
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