Friday, 24 November 2017

आराधना कविता

      आराधना
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कोमल मन मे बसा हुआ है

कवि का अनोखा पूजा पाठ

नित्य नवीन करता है आराधना

लिए  क़लम की धार

शब्दों की माला धारण किये

घूमा करता है संसार

काग़ज़ की थाली रहती हरदम उसके पास

जिसमें परोसता है शब्दों के व्यंजन बना

नौ रसों का स्वाद

आनंदमग्न सभी जब खाते

तभी कवि मन में मुस्कुराता

कल के लिए फिर नयी थाल सजाता

ताकि निष्फल न हो उसकी

आराधना का संसार ।



आभा दवे (24-11-2017) Friday 

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