समर्पण
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लाल चुनरी में आई
सारी खुशियां भर लाई
तन मन दोनों किया समर्पण
तब ही सुहागन कहलाई ।
मां बन जाने पर
खुशी से फूली न समाई
किया अपना सर्वस्व समर्पण
तभी अच्छी मां कहलाई
सारे रिश्ते नाते बखूबी निभाते
अपने अरमानों को पीछे छोड़ आई
फिर भी न इतराई
प्रेम जो उसके पास है इतना
लुटाती चली आई ।
नारी की शक्ति जग जाने
उसका ही समर्पण मांगे
वह सदियों से देती आई
तभी वह देवी कहलाई ।
आभा दवे
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