Saturday 16 December 2017

समर्पण कविता


समर्पण
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लाल चुनरी में आई

सारी खुशियां भर लाई

तन मन दोनों किया समर्पण

तब ही सुहागन कहलाई ।

मां बन जाने पर

खुशी से फूली न समाई

किया अपना सर्वस्व समर्पण

तभी अच्छी मां कहलाई

सारे रिश्ते नाते बखूबी निभाते
अपने अरमानों को पीछे छोड़ आई

फिर भी न इतराई

प्रेम जो उसके पास है इतना

लुटाती चली आई ।


नारी की शक्ति जग जाने

उसका ही समर्पण मांगे

वह सदियों से देती आई

तभी वह देवी कहलाई ।



आभा दवे

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