ठग
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नीली छतरी लिए खड़ा वो
सबको रिझा रिझा कर जो
मन में बसता जाता है
न जाने कैसा है वो ?
सुबह सवरे सब से पहले
याद वही जो आता है
मंदिर ,मस्जिद ,चर्च ,गुरुद्वारा
न जाने कहाँ छुप जाता है ?
मन के साथ आँख मिचौली खेले
कभी पास तो कभी दूर नज़र आता है
है ये कैसा ठग जो सबके मन को भाता है ?
ठग जाने पर भी कोई
इसकी रपट नहीं लिखवाता है
हर बार खुद ही ठग जाने को
नीली छतरी के पास जाता है ।
आभा दवे ( 17-12-2017) रविवार
वाह क्या खूब
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