बात
——— क्षणिकाएँ
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वह अदृश्य है
फिर भी रोज
उनसे ही
बात होती है।
मन
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मन ही रच लेता है
एक संसार
जिसका न कोई
आर पार।
सम्मान
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मिल जाता जो
इतना सम्मान
तो बुढ़ापा
ठूंठ न कहलाता।
फूल
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फूल से खुशबू
जुदा नहीं होती
कहीं भी चढ़े फूल
उनके बिना विदा नहीं होती ।
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