Wednesday 7 October 2020

कविता-कोरोना का रोना /आभा दवे

कोरोना का रोना....
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कोरोनावायरस की फैली कैसी बीमारी
कोई न सेवा कर सके, है सब की लाचारी
सभी की जिंदगानी बेमानी सी हो रही
समूचे विश्व की ही नींव हिल गई सारी ।

खोया -खोया सा इंसान अब रहने लगा
जागते -सोते भी भावनाओं में बहने लगा
न जाने कब बिछड़ जाए वह अपनों से
जीवन भी हौले -हौले से सब कहने लगा।

भूख ,लाचारी,बेईमानी , हिंसा आदि तो
सदियों से धरती पर चली ही आ रही है
उस पर तरह-तरह की बीमारियाँ भी 
जग में अपना नया तांडव मचा रही है।

न जाने कब खत्म होगा ये खौफनाक दौर
पाएँगे सब अपना-अपना एक निश्चिंत ठौर
इंसानियत भी एक दूसरे को मुंह चिढ़ा रही है
समय की घड़ी भी कुछ न बता पा रही है।

जग में सभी सुखी हों यही कामना हमारी
फूले -फले सदा यह दुनिया हमारी, तुम्हारी
कोरोना का रोना जल्द खत्म हो जगत से

फिर से गुलजार हो यह धरती सबकी प्यारी।

आभा दवे
मुंबई
26-9-2020



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