Wednesday 7 October 2020

कविता/अनाड़ी-खिलाड़ी/आभा दवे











अनाड़ी -खिलाड़ी
-----------------------
दौर ऐसा चल रहा 
हर किसी को छल रहा
'मैं'की कीमत बढ़ रही 
'हमसे' नाता कट रहा
चालाकी का खेल खेलते 
लोग हर जगह आज कल
अनाड़ी भी हो रहे खिलाड़ी
अब तो देखो तरह -तरह से
मासूमियत की शक्ल में
खुद को ही इंसा छल रहा।

आभा दवे
3-10-2020

शनिवार 

No comments:

Post a Comment