Wednesday 7 October 2020

कविता-सूरज-चंदा /आभा दवे

सूरज -चंदा/आभा दवे 
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पूरब ,पश्चिम, उत्तर ,दक्षिण
आओ तुमको बतलाएँ
सूरज चंदा कहाँ से आए
कहाँ जाकर छुप जाएँ ।

रोज सवेरे सूरज आता
पूर्व से निकल भर देता
अपना चारों ओर उजाला
रोशन कर देता जग सारा ।

दिन भर चलता रहता वो
थककर खो जाता पश्चिम में
बाँए हाथ पर उत्तर दिशा
दाहिने हाथ पर दक्षिण दिशा 
मुस्कराती , इठलाती ।

पूरब ,पश्चिम, उत्तर ,दक्षिण 
दिशाओं में जीवन चलता जाता है 
और हम सबको नया संगीत सुनाता है
चाँद -सितारों के बीच खड़ा मुस्काता है।

सूरज के जाने के बाद चंदा बादल
से निकलकर हम सब को लुभाता है
बच्चों का मामा बन उनको खूब हँसाता है
तारों की बारात लिए सागर से बतियाता है।
आभा दवे  


 

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