Thursday 4 July 2019

कविता -वो

  वो  / आभा दवे 
 --—————
गर्मी के दिन है लू चल रही है
तपती दोपहर में वो श्रम कर रही है
पसीना तन से पानी की तरह बह रहा है
फिर भी वह पानी के लिए तरस रही है 
हर रोज ईट ढो-ढो कर कमाती है वह थोड़ा
अपनी ही कमाई से भरण-पोषण कर रही है
चिंता की लकीर चेहरे पर दिखती नहीं है
कम कमाई में ही वह खुश हो रही है
अपने पैरों पर खड़ी वह दुनिया को दिखा रही है
मेहनत की कमाई से वह घर चला रही है
बच्चों की खातिर वह सब दर्द सहे जा रही है
गर्मी  की धूप में अपने तन को तपा आ रही है
कोई शिकवा- शिकायत नहीं किस्मत से
 वो तो आंचल  के तले खिलखिला रही है ।

आभा दवे







No comments:

Post a Comment