Wednesday 3 July 2019

कविता -अंश /हिस्सा

 अंश/हिस्सा—आभा दवे 
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 मैं एक छोटा सा अंश इस धरा में

अपनी ही पहचान से अंजान  था

माना अंश हूँ माँ- पिता के  प्यार का

पर हूँ तो उनसे भी जुदा अपने स्वभाव में

बढ़ रहा था उनकी अंगुली पकड़

चल भी रहा था उनके पदचिन्हों पर

अचानक वक्त ने करवट बदली

और माता- पिता का साया न रहा

उनका ये अंश हो गया बेसहारा

दुनिया की ठोकर सह रहा था बेचारा

एक दिन अचानक हो गई मुलाकात एक अजनबी से

उसने कहा बड़ी ही समझदारी से 

तू उस ईश्वर का हिस्सा है  जो कभी जुदा नहीं होता

बीच मझधार में कभी नहीं खोता

लिखी है उसने तेरी अलग ही कहानी

देनी है तुझे लाखों को जिंदगानी

अमर सदा तेरा नाम रहेगा 

देश को तुझ पर नाज़ रहेगा

करनी होगी तुझे देश की सेवा

अंश है तू  इस धरा का

माटी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर

तिरंगे की शान तुझ से ही है

तेरी पहचान उससे ही है

अब जाग जा देश की माटी

दे रही सदा 

अपने हिस्से की जिम्मेदारी को 

तन -मन -धन से निभा जरा

मैं हरदम तेरे साथ हूँ खड़ा

कंधे से कंधा मिला 

शहीदों की शहादत का सम्मान कर

इंसानियत के नाते 

उनका गौरव गान कर

शीश न झुके कभी कायरता से

अपने आप को भी इस माटी पर कुर्बान कर 

चल पड़ा हूँ मैं अब शान से 

लिए गर्व सीना तान के

अपने देश की खातिर जीऊँगा 

देश की खातिर मरुँगा ।




*आभा दवे

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