Friday 5 July 2019

कविता -कमाई

कमाई*
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बहुत भली सी लगती है 
खुद की *कमाई*
एक अटल विश्वास रहता है 
मन में
हाँ, अपने पैरों पर खड़ी हूँ
कर सकती हूँ दूसरों की मदद
अपनी *कमाई* से ।

जब हाथ में पहली *तनख्वाह* 
आई थी
रख दिए थे सारे नोट पति
के सामने
उन्होंने मेरी खुशी में
घर की खुशियाँ देख 
ली थी 
मेरे अंदर एक नया विश्वास 
जगाया था
मेरे सपनों को साकार बनाया था ।

पति की *आमदनी* तो होती 
है खास
घर के सारे खर्चे होते हैं उससे ही पूरे
जो जुड़ गई उसमें एक और कड़ी
साथी की
तो गम की नहीं कोई बात
मँहगाई के इस दौर में
कदम से कदम मिलाकर
चलना पड़ता है साथ
कोई किसी से न पूछे
अब *कमाई* वाली बात



*आभा दवे*

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