Tuesday 9 July 2019

लघुकथा -खुशी /आभा दवे

*खुशी*
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दीपेश ने अपने पिताजी से फोन पर तुरंत शहर आने के लिए कहा ।आने का कोई कारण नहीं बताया और फोन रख दिया।

        दीपेश के पिताजी दीपेश की बात टाल नहीं पाए और शहर के लिए निकल गए। दीपेश उनका इकलौता लड़का था । दीपेश की मां को दुनिया से गए दो साल हो गए थे । दीपेश शहर में एक छोटे से मकान में रह रहा था और शहर में ही नौकरी कर रहा था । इसलिए उसके पिताजी अक्सर गांव में अकेले ही रहते थे। ट्रेन में बैठते ही दीपेश के पिताजी के मन में बुरे- बुरे ख्याल आने शुरू हो गए।
ट्रेन का पूरा सफर उनका बुरे ख्यालों में ही बीता । जैसे ही उनका स्टेशन आया तो  ट्रेन के रुकते ही सामने उन्होंने दीपेश को हंसते हुए पाया। दीपेश को हंसता हुआ देखकर उनकी सारी चिंताएं खत्म हो गई थी। दीपेश ने अपने पिताजी को कार में बैठने का इशारा किया ।
कार में बैठते ही दीपेश ने अपने पिताजी से हालचाल पूछने के अलावा  रास्ते में और कोई बात नहीं की । आधे घंटे बाद कार जाकर एक बड़ी सी बिल्डिंग के सामने रुक गई। पिताजी ने बड़े आश्चर्य से दीपेश की ओर देखा। दीपेश ने पिताजी से कहा "चलिए पिता जी आप सही जगह ही आए हैं।"पांचवी मंजिल पर पहुंचते ही घर की चाबी निकाल कर देते हुए उसने पिताजी कहा" पिताजी घर का ताला खोलिए, यह घर आपका ही है आपको गांव में अब अकेले रहने की जरूरत नहीं है।" पिताजी ने जैसे ही घर का ताला खोला अंदर दीपेश के सारे दोस्तों ने ताली बजाकर पिता जी का गर्मजोशी से स्वागत किया । दीपेश के पिताजी के पास कहने को कोई शब्द नहीं थे आज उनका रोम -रोम पुलकित हो रहा था  ।

आभा दवे

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