मसरुफ़/ लीन/ रत
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आभा दवे
सावन की रिमझिम फुहारे पड़ी हैं
बरखा ने देखो धरती रंगी है
हरियाली छाई है चहुँओर
फुलवारी भी फूलों से ढँकी है ।
मौसम भी देखो *मसरूफ* कितना
झरनों की अद्भुत झड़ी सी लगी है
नदियाँ कल -कल गीत गा रहीं है
सागर से मिलने वो जा रही है ।
आसमान में बिजली डोल रही है
बादलों से ना जाने क्या बोल रही है
अपने में *लीन* वो *मशगूल* हो
पर्वतों से जाकर टकरा रही है ।
लुभा रहा सभी को ये खूबसूरत नज़ारा
तस्वीरों में उतर आई सभी की छवि है
भीगी हुई रात , पवन ये सुहानी
अपने में *रत* सभी की जिंदगानी ।
*आभा दवे*
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