Saturday 6 July 2019

मेरे पसंद के कबीर जी के दोहे


 कबीरदास जी के दोहे आज भी अपना असर छोड़ जाते है । जितनी बार भी पढ़ो उतनी बार ही मन पर गहरा असर छोड़ते है ।कबीर दास जी की लेखनी को नमन करते हुए उनके कुछ दोहे -

कबीरदास जी के दोहे   
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गुरु गोविंद दोउ खड़े काको लागूं पाय ।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंन्द दियो बताय ।।



जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।


कस्तूरी कुंडल बसे,मृग ढूँढत बन माही।

ज्योज्यो घट– घट राम है,दुनिया देखें नाही ।।


जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।

प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ।


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।


 पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।




 दुःख में सुमिरन सब करे ,सुख में करे न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तोओ पीर घनेरी होय।


 साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय ।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

 कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।


 कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।

कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन ।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।


 जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।


 दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,

ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।


दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।


कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।

करता रहा सो क्यों रहा,अब करी क्यों पछताय ।

बोया पेड़ बबुल का, अमुआ कहा से पाये ।

कस्तूरी कुंडल बसे,मृग ढूँढत बन माही।

ज्योज्यो घट– घट राम है,दुनिया देखें 



जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।

प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ।


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।


 पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।




 दुःख में सुमिरन सब करे ,सुख में करे न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तोओ पीर घनेरी होय।


 साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय ।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

 कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।


 कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन।

कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन ।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।


 जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।


 दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,

ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।


दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।


कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।

करता रहा सो क्यों रहा,अब करी क्यों पछताय ।

बोया पेड़ बबुल का, अमुआ कहा से पाये ।

कस्तूरी कुंडल बसे,मृग ढूँढत बन माही।

ज्योज्यो घट– घट राम है,दुनिया देखें नाही ।।


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