लघुकथा
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*बदहाली*/ आभा दवे
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*बदहाली*/ आभा दवे
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नीलू को जैसे ही चार बजे शाम को एक अनजान फोन आया वैसे ही वह ऑफिस का सारा काम छोड़कर घर की ओर भागी । उसने ऑफिस में किसी से कुछ नहीं कहा । सभी की नजरें भागती हुई नीलू पर गई । रीना ने भागती हुई नीलू से पूछा -"कहाँ भागी जा रही हो ऐसे ?" नीलू ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया "घर" ..
नीलू जैसे ही घर पहुँची वह अवाक रह गई उसका बेटा जो कुछ दिन पहले ही अमेरिका से घर आया था वह अपने दोस्तों के साथ बैठकर शराब पी रहा था और उन दोस्तों के साथ लड़कियाँ भी शराब पीकर सिगरेट का धुआँ उड़ा रही थी। सभी *बदहाली* की अवस्था में थे ।
नीलू को पहले तो कुछ समझ नहीं आया । फिर उसने सभी से अपनी वाणी को नियंत्रित करते हुए कहा-"अब तुम लोग अपने -अपने घर जा सकते हो । शायद मैं ही गलत थी मैंने अपने बेटे पर इतना भरोसा किया।" गला रुँध जाने पर वह और कुछ न कह पाई आँखों से अश्रु धारा निकल पड़ी।
*आभा दवे*
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