Tuesday 12 November 2019

रचना -आहिस्ता -आहिस्ता /आभा दवे

आहिस्ता -आहिस्ता
-------------------------
मेरे करीब वो आए आहिस्ता -आहिस्ता
दिल में फिर समाए आहिस्ता आहिस्ता ।

छूट गई बाबुल की गलियाँ और सखियाँ
हो गए फासले सब से आहिस्ता-आहिस्ता।

चल पड़ी  फिर  जिंदगी  इक नयी डगर में
पराए  लगने लगे अपने आहिस्ता -आहिस्ता ।

असां नहीं होता निभाना गृहस्थी का सफर
बढ़ चले कदम इस राह पे आहिस्ता-आहिस्ता ।

त्याग माँगता है जीवन  हर मोड़ पर अक्सर
समर्पित होता गया जीवन आहिस्ता- आहिस्ता ।

सदियों से यही कहानी चली आ रही है जीवन की 
हर बार वो ही छली जा रही है आहिस्ता -आहिस्ता ।

आभा दवे
ठाणे (पश्चिम) मुंबई

No comments:

Post a Comment