आहिस्ता -आहिस्ता
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मेरे करीब वो आए आहिस्ता -आहिस्ता
दिल में फिर समाए आहिस्ता आहिस्ता ।
छूट गई बाबुल की गलियाँ और सखियाँ
हो गए फासले सब से आहिस्ता-आहिस्ता।
चल पड़ी फिर जिंदगी इक नयी डगर में
पराए लगने लगे अपने आहिस्ता -आहिस्ता ।
असां नहीं होता निभाना गृहस्थी का सफर
बढ़ चले कदम इस राह पे आहिस्ता-आहिस्ता ।
त्याग माँगता है जीवन हर मोड़ पर अक्सर
समर्पित होता गया जीवन आहिस्ता- आहिस्ता ।
सदियों से यही कहानी चली आ रही है जीवन की
हर बार वो ही छली जा रही है आहिस्ता -आहिस्ता ।
आभा दवे
ठाणे (पश्चिम) मुंबई
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